ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने अपनी प्रेयसी जो उनको प्राणों से अधिक प्रिय थी, उनसे विवाह नहीं किया। रुक्मिणी कृष्ण की पहली पत्नी थी। महाभारत में राधा रानी का जिक्र नहीं है। भागवत पुराण में भी राधा रानी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है। हालांकि ब्रज के भागवताचार्यों का कहना है कि ब्रज में राधा- कृष्ण के विवाह के साक्ष्य मौजूद हैं। संतों का कहना है कि ज्यादातर लोग भागवत सुनते हैं, जहां राधा रानी का जिक्र ही नहीं है। लेकिन पुराणों में उनके विवाह का उल्लेख मिलता है। राधा-कृष्ण के विवाह का जिक्र ब्रह्म वैवर्त पुराण , गर्ग संहिता, शिव महापुराण और स्कंद पुराण में है।
ब्रह्म वैवर्त पुराण
ब्रह्म वैवर्त पुराण के प्रकृति खंड अध्याय- 49 के श्लोक 40, 43, 44 में राधा रानी और कृष्ण के विवाह का वर्णन है।
श्लोक 40
छायाम् संस्थाप्य तद्गेहे सांतर्धान मवाप ह।
बभूव तस्य वैश्यस्य विवाहश्छायया सह ।।
अर्थात- श्रीजी( राधारानी) अपनी छाया को घर में स्थापित करके अंतर्ध्यान हो गईं और इस तरह से वैश्य रायण का विवाह छाया राधा से हुआ न कि श्रीजी से।
श्लोक 43
कृष्णेन सह राधायाः पुण्ये वृंदावने वने।
विवाहम् कारयामास विधिना जगताम् पति ।।
श्लोक 44
स्वयं राधा हरेः कोड़े छाया रायण मंदिरे।
गर्ग संहिता
गर्ग संहिता के गिर्राज खंड अध्याय- 5 के श्लोक संख्या 15-16, 31- 34 में ब्रजरानी राधिका और श्रीकृष्ण के विवाह का जिक्र है।
वृषभानु सुता राधा या जाता कीर्ति मंदिरे।
तस्याः पतिव्यम् साक्षात् तेन राधा पतिः स्मृतः ।।
श्लोक 31 और 34 में राधारानी और भगवान श्रीकृष्ण के विवाह स्थल भांडीरवन का जिक्र है। इसमें लिखा गया है कि ब्रह्मा जी ने राधा और कृष्ण का भांडीरवन में विवाह कराया था। यहां के मंदिर में श्री कृष्णा को राधारानी की मांग में सिंदूर डालते हुए दिखाया गया है।
शिव महापुराण
श्लोक 40
कलावती सुता राधा साक्षाद् गौलोक वासिनी।
गुप्त स्नेह निबद्धा सा कृष्ण पत्नी भविष्यति ।।
स्कंद पुराण
आत्मा तु राधिका तस्य तयैव रमणादसौ ।
आत्माराम इति प्रोक्तः ऋषिभिः गूढ़ वेदिभिः ।।