नई दिल्ली :- युद्ध की स्थिति में हथियार भंडार का लबालब भरा होना अत्यंत जरूरी है और ये सबक यूक्रेन युद्ध से सीखा जा सकता है। क्योंकि, पिछले डेढ़ सालों से यूक्रेन में युद्ध लड़ रहे रूस का हथियार भंडार खाली होने के कगार पर है और, हथियार भंडार बढ़ाने के लिए वो कभी ईरान, तो कभी उत्तर कोरिया से मनुहार कर रहा है। दूसरी तरह, यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई करते-करते अमेरिका का हथियार भंडार भी अब काफी खाली हो गया है। लिहाजा, भारत के शीर्ष अधिकारियों के मुताबिक, यूक्रेन और रूस के बीच पिछले डेढ़ सालों से चल रहे युद्ध ने भारतीय सेना को भी युद्ध से संबंधित कई मोर्चों पर नये सिरे से तैयारी करने के लिए प्रेरित किया है, जिसमें गोला बारूद का भंडार बढ़ाने, तोपखानों का विस्तार करने, रॉकेट और बंदूकों के मिश्रण की तरफ ध्यान केन्द्रित करना शामिल है।
रिपोर्ट के मुताबिक, शीर्ष अधिकारियों ने सटीक-निशाना लगाकार मार करने वाले हथियार सिस्टम, एडवांस टेक्नोलॉजी को हासिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। इसके साथ ही, युद्ध के मैदान में पारदर्शिता बरतने के महत्व को रेखांकित किया है।
यूक्रेन युद्ध से भारत ने क्या सीखा?
अधिकारियों ने शुक्रवार को कहा है, कि युद्ध ने “सैन्य संरक्षण” यानि, युद्ध के दौरान दुश्मन की जवाबी बमबारी से जवानों की रक्षा के लिए पर्याप्त उपायों की आवश्यकता को भी रेखांकित किया है, इसलिए अधिक मात्रा में ऑटोमेटिक बंदूकों, घुड़सवार बंदूकों और स्कूट क्षमता वाली सहायक बिजली इकाइयों के साथ सिस्टम या खींची गई बंदूकों की की आवश्यकता पर बल दिया है।
शीर्ष अधिकारी ने कहा, कि ये प्रमुख सबक हैं, जो युद्ध से भारतीय तोपखाने के लिए उभरे हैं, और अब इन्हें इसके सिद्धांतों और क्षमता विकास योजनाओं में शामिल किया जा रहा है।
एक अधिकारी ने कहा, कि रूस-यूक्रेन युद्ध ने युद्ध जीतने वाले फैक्टर्स के रूप में गोलाबारी के महत्व की फिर से पुष्टि की है, यह देखते हुए, कि युद्ध में 80 प्रतिशत मौतें तोपखाने की आग के कारण हुईं।
उन्होंने कहा, कि अनुमान है, कि रूस के सैनिक एक दिन में 20,000 तोपखाने गोले दाग रहे हैं और यूक्रेनी पक्ष हर दिन 4,000 से 5,000 गोले दाग रहा है।