भुवनेश्वर(उड़ीसा):- सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक ने ‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ के मौके पर पुरी समुद्र तट पर एक सैंड आर्ट बनाकर तंबाकू छोड़ने का संदेश दिया है। हर साल की 31 मई को ‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य तंबाकू उत्पादों के सेवन से होने वाले हानिकारक और घातक प्रभावों के प्रति लोगों को जागरुक करना है। हर साल ही इस दिन को एक अलग थीम पर निर्धारित कर सेलिब्रेट किया जाता है और इस साल यानी 2023 का थीम है- We need food, not tobacco, जिसका अर्थ है ‘हमें भोजन की जरूरत है नाकि तंबाकू की’।
धूम्रपान कैंसर से संबंधित मौतों के 30 प्रतिशत मामले
दुनिया भर में कैंसर के बढ़ते मामलों के बीच, धूम्रपान कैंसर से संबंधित सभी मौतों का 30 प्रतिशत और फेफड़ों के कैंसर से होने वाली 80 प्रतिशत मौतों का कारण बनता है। यह मनुष्यों में 12 से अधिक प्रकार के कैंसर के खतरे को भी बढ़ाता है। शरीर पर कई प्रकार के हानिकारक प्रभावों के बावजूद मस्तिष्क को खुशी में बदलने की क्षमता के कारण धूम्रपान अत्यधिक प्रचलित है। लोगों को खुशी के इस निर्णायक जाल से बाहर निकालने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल 31 मई को तंबाकू विरोधी दिवस मनाता है जिसे विश्व तंबाकू निषेध दिवस भी कहा जाता है।
तंबाकू के उपयोग से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए यह दिन मनाया जाता है जिसमें धूम्रपान और धुआं रहित तंबाकू उत्पाद शामिल हैं। यह लोगों को तम्बाकू छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है और सरकारों और संगठनों को तम्बाकू के उपयोग के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
भारत में तम्बाकू की उत्पत्ति
तम्बाकू की उत्पत्ति कब और कहाँ हुई इसका ठीक पता नहीं चलता। कहते हैं कि एक बार पुर्तग़ाल स्थित फ्राँसीसी राजदूत ‘जॉन निकोट’ ने अपनी रानी के पास तम्बाकू का बीज भेजा और तभी से इस पौधे का प्रवेश प्राचीन संसार में हुआ। निकोट के नाम को अमर रखने के लिये तम्बाकू का वानस्पतिक नाम ‘निकोशियाना’ रखा गया। तम्बाकू दक्षिणी अमेरिका का पौधा माना जाता है। इसकी खेती ऐतिहासि काल से हाती चली आ रही है। यद्यपि तम्बाकू अयनवृत्तीय पौधा है। तथापि इसकी सफल खेती अन्य स्थानों में भी होती है क्योंकि यह अपने को विभिन्न प्रकार की भूमि तथा जलवायु के अनुकूल बना लेता है।
भारत में तम्बाकू का आगमन
ऐसा माना जाता है कि 17वीं सदी में पुर्तग़ालियों द्वारा भारत में तम्बाकू की खेती का प्रारंभ हुआ। 17वीं, 18वीं सदियों में यूरोपीय यात्रियों ने भारत में तम्बाकू की खेती और उसके उपयोग का उल्लेख किया है। मुग़ल सम्राट जहाँगीर के समय में तम्बाकू की खेती का प्रचार नहीं हो पाया क्योंकि उन्होंने घोषणा की थी कि तम्बाकू पीनेवालों के होठों को काट दिया जाएगा। व्हाइटलॉ आइन्स्ली की लिखी हुई ‘मेटिरिया इंडिका’ नामक पुस्तक में देशी तथा यूरोपीय डॉक्टरों द्वारा भारत में दवा संबंधी प्रयोजनों के लिये तम्बाकू के उपयोग के बारे में लिखा है। सामाजिक रुकावटों के अभाव के कारण अब धूम्रपान सरलता से अपनाई जानेवाली आदत बन गई है।