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सत्ता के दो भूखे जनरलों की लड़ाई ने सूडान को बना दिया जंग का मैदान

सूडान:-  पिछले कुछ हफ्तों से सूडान जंग का मैदान बना हुआ है और सत्ता के भूखे जनरलों के बीच चल रही लड़ाई में सैकड़ों लोग और सेना के जवान मारे जा चुके हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, अभी तक आधिकारिक तौर पर सूडान में 264 नागरिकों के साथ 400 लोग मारे गये हैं। वहीं, करीब 4 हजार लोग घायल हुए हैं।

मौत का ये आंकड़ा अभी तक वास्तविक नहीं है और युद्ध थमने के बाद इस आंकड़े में भारी उछाल आ सकता है। वहीं, कई देश संघर्ष के बीच अपने-अपने राजनयिकों और नागरिकों को तत्काल निकाल रहे हैं, जिससे गंभीर मानवीय संकट पैदा हो गया है।

विदेश मंत्रालय अरिंदम बागची ने 23 अप्रैल को कहा कि युद्धग्रस्त सूडान में फंसे अपने नागरिकों को निकालने के लिए भारत ने सऊदी अरब में दो भारी-भरकम विमान और सूडान के तट पर एक जहाज भेजा है। सुरक्षा की स्थिति में सुधार होने पर युद्धग्रस्त देश से लोगों को निकालने के लिए एक आकस्मिक योजना को सक्रिय करने की भारत की योजना है। हालांकि, 72 घंटों का युद्धविराम होने के बाद माना जा रहा है, कि तेजी से विदेशी लोग सूडान से बाहर निकाले जाएंगे।

अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है, कि करीब 48 घंटों तक चली बातचीत के बाद जंग के मैदान में आमने सामने खड़ी सूडानी सशस्त्र बल (एसएएफ) और रैपिड सपोर्ट फोर्स (आरएसएफ) अगले तीन दिनों के लिए युद्धविराम पर राजी हो गये हैं। यानि, अब इन 72 घंटों में भारतीय लोगों के साथ साथ दूसरे देश के लोगों को भी सूडान से बाहर निकालने में आसानी होगी।

सत्ता के लिए दो जनरलों में लड़ाई

सूडान में चल रहे गृहयुद्ध के केन्द्र में सत्ता के भूख दो शख्स हैं। जनरल अब्देल फत्ताह अल-बुरहान, सूडानी आर्म्स फोर्सेस (SAF) के कमांडर और अफ्रीकी राष्ट्र के वास्तविक नेता मोहम्मद हमदान, जिन्हें हेमेदती के नाम से जाना जाता है और वो सूडान के रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (RSF) का नेतृत्व कर रहे हैं।

सूडान के इन दो प्रतिद्वंद्वियों के बीच अपने अस्तित्व को बचाने और देश की सत्ता पर अपना प्रभुत्व हासिल करने के लिए संघर्ष लंबे समय से चल रहा था, लेकिन पिछले साल शुरू की गई एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थित राजनीतिक प्रक्रिया ने उनके बीच के तनाव को और बढ़ा दिया।

सूडान में 25 अक्टूबर 2021 को सेना यानि SAF और RSF ने साथ मिलकर लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट किया था। जिसके बाद सूडान के ऊपर अंतर्राष्ट्रीय दबाव काफी बढ़ने लगा और आखिरकार पिछले साल दिसंबर में सेना और आरएसएफ ने एक समझौता फ्रेमवर्क पर साइन किए।

उस समझौते ने देश में एक नई राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत की। इस समझौते के तहत देश के सभी प्रमुख मुद्दों को संबोधित करने और उन्हें सुलझाने की बात कही गई थी। वहीं, समस्याओं को सुलझाने के बाद देश में फिर से चुनाव कराने और एक लोकतांत्रिक सरकार के गठन का वादा भी इस समझौते में किया गया था।

इस समझौते में सुरक्षा बलों पर लगाम लगाने के लिए सुरक्षा क्षेत्र में सुधार सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण मुद्दा था। लेकिन, राजनयिकों का कहना है, कि इस समझौते ने सुरक्षा बलों को अपनी ताकत को लेकर असुरक्षित कर दिया।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय जल्द से जल्द एक नागरिक सरकार की बहाली चाहता था। लिहाजा, ये समझौता पटरी से उतर गया। नतीजतन, राजनीतिक प्रक्रिया ने आरएसएफ और सेना के बीच के टकराव को तेज कर दिया। दोनों बल, देश की सत्ता पर अपना नेतृत्व चाहते हैं। स्वतंत्र राजनीतिक टिप्पणीकार जोनास हॉर्नर का कहना है, कि दोनों ही बलों को इस बात का डर है, कि अगर वो हारे, तो सूडान में उनकी हैसियत ही खत्म हो जाएगी।

ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल सहित वैश्विक अधिकार समूहों के मुताबिक, आरएसएफ अरब सशस्त्र समूहों के सहयोग से विकसित हुआ, जिन पर 2000 के दशक की शुरुआत में दारफुर में नरसंहार करने का आरोप लगाया गया था। इसका गठन साल 2013 में सूडान के पूर्व राष्ट्रपति उमर अल-बशीर ने किया था, जिन्होंने इस समूह को सीधे अपनी कमान में रखा था और इसे अपनी शासन को सेना से बचाने और सेना की खुफिया एजेंसियों से अपनी सरकार की रक्षा करने का काम सौंपा।

हालांकि, तत्कालीन राष्ट्रपति उमर अल-बशीर की ये योजना फेल हो गई और लोकतंत्र समर्थक के महीनों के विरोध के बाद अप्रैल 2019 में सेना और आरएसएफ, दोनों ही अल-बशीर के खिलाफ हो गए। आरएसएफ ने सेना से स्वतंत्र रूप से काम करना शुरू कर दिया और दोनों के बीच राज्य की संपत्ति, विदेशी संरक्षक, वैधता और भर्तियों के लिए प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई।अक्टूबर 2021 में दोनों सेनाओं ने सूडान के उमर अल-बशीर की सरकार का तख्तापलट तो कर दिया, लेकिन उसी वक्त विशेषज्ञों ने चेतावनी दे दी थी, कि ये दोनों बल आगे चलकर एक दूसरे के खिलाफ हो जाएंगे। अब जाकर ये आशंका सच साबित हुई है।

सूडानी विश्लेषक और लोकतंत्र आंदोलन का समर्थन करने वाले वकील हामिद मुर्तदा ने संघर्ष से एक दिन पहले अल जज़ीरा को बताया था, कि “सेना और आरएसएफ दोनों ने सुविधा का विवाह किया था, लेकिन सेना में आरएसएफ को शामिल करने के मुद्दे को नजरअंदाज किया जाता रहा।

वहीं, सूडान की मौजूदा स्थिति काफी खराब होती जा रही है और देश में भोजन, पानी और दवा की किल्लत शुरू हो गई है। वहीं, सूडान में डॉक्टरों के संगठन के प्रमुख अत्तिया अब्दुल्ला ने न्यूज एजेंसी एएपपी को बताया है, कि शहर में जहां तहां लोगों की लाशें पड़ी हैं और मुर्दाघर भरे हुए हैं।

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