संसदीय चुनाव २०१९ के लिए बीजेपी को मिल चुकी है बढुत, जानिए क्या है कहानी

वाराणसी. वर्ष 2014 में हुए संसदीय चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत मिली है इसके बाद भी यह सिलसिला थमा नहीं है। बीजेपी ने पहले देश की सत्ता पर कब्जा किया है और फिर राज्यों में भी तेजी से भगवा सरकारे बन रही है। देश की राजनीति में आये बदलाव की वजह पीएम मोदी की छवि व अमित शाह की रणनीति मानी जा रही है। फिलहाल बीजेपी ने संसदीय चुनाव 2019 के लिए बढ़त बना ली है यदि विरोधी दल सही ढंग से अपनी भूमिका नहीं निभा पाते हैं तो बीजेपी को रोकना आसान नहीं होगा।
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बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अभी से संसदीय चुनाव 2019 की रणनीति बना ली है और उसी अनुसार कार्य करने में जुट गये हैं। दूसरी तरफ विपक्षी दलों का हाल बेहाल है। सपा, कांग्रेस, बसपा जैसे दल अभी तक यह तय नहीं कर पाये हैं कि उन्हें संसदीय चुनाव अकेले लडऩा है या फिर गठबंधन करके। बीजेपी ने तैयारी के मामले में विरोधी दलों पर बढ़त बना ली है। अमित शाह को ऐसे ही नहीं बीजेपी का चाणक्य कहा जाता है। अमित शाह ने उन सीटों पर भी बीजेपी को जीत दिलायी है, जहां पर पार्टी का खाता तक नहीं खुलता था इसकी मुख्य वजह विरोधी दलों में सेंधमारी है। बीजेपी सूत्रों की माने तो पार्टी इस रणनीति पर अभी भी काम कर रही है। अमित शाह जानते हैं कि पीएम नरेन्द्र मोदी जैसा नेता की लहर में भी प्रत्याशी नहीं जीतता है तो फिर दूसरे दल के जीतने वाले प्रत्याशी पर दांव लगाना सही होता है। वर्ष 2014 संसदीय व यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में बीजेपी ने यही दांव खेला था और अब ऐसे सीटों की सूची बनायी गयी है जहां पर संसदीय चुनाव 2019 में बीजेपी की जीतने की संभावना है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इन सीटों पर बीजेपी दूसरे दल के प्रत्याशियों को तोड़ कर कमल के निशान पर चुनाव लड़ाये।
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बीजेपी ने पहले ही दिये हैं प्रत्याशियों के बदलने के संकेत
सदन में अनुपस्थित रहने वाले बीजेपी सांसदों के प्रति पीए मोदी ने नाराजगी जतायी है और बीजेपी ने यह तक कहा है कि कई लोग के टिकट काट कर अपको दिया गया था और संसदीय चुनाव 2019 में अनुपस्थित रहने वालों सांसदों को हिसाब लिया जायेगा। इससे साफ हो जाता है कि संसदीय चुनाव 2019 aaमें बीजेपी अपने कई सांसद का टिकट काट कर नये चेहरे या फिर दूसरे दल से आये नेताओं को प्रत्याशी बना सकती है। फिलहाल तैयारी व रणनीति की बात की जाये तो बीजेपी अपने विरोधियों से आगे निकल चुकी है।
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