पटना (बिहार):- बिहार के सारण जिले में जहरीली शराब ने फिर दुखद मंजर पेश किया है, जिसकी गूंज राज्य की विधानसभा में स्वाभाविक ही सुनाई पड़ी है। अगस्त महीने में भी सारण में जहरीली शराब का आतंक सामने आया था। साल 2016 से ही लागू शराबबंदी के कड़े कानून को तवज्जो न देने वालों की तादाद क्या बढ़ती जा रही है? शायद ही ऐसा कोई जिला होगा, जहां यह जहरीला कारोबार न चल रहा होगा, लेकिन सरकार के लिए मजबूरी यह है कि वह कहां-कहां चौकीदारी बिठाए? समाज ऐसा है कि शराबी सामने आने से बचते हैं, उन्हें लोक-लाज का भय भी सताता है, शिकायत की विधिवत स्थिति नहीं बन पाती है।
ऐसे में, प्रशासन भी मजबूर हो जाता है। ज्यादातर मामलों में मामूली कार्रवाई और जुर्माना अदा करके दोषी बाहर आ जाते हैं और फिर चोरी-छिपे जहर का यह धंधा जारी रहता है।
जहां पुलिस जांच में जुटी है, वहीं मृतकों के परिजनों का दावा है कि जहरीली शराब के सेवन से ही उनके रिश्तेदारों की मौत हुई है।
बार-बार मौतों पर बिहार में राजनीति भी खूब होती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शराबबंदी नीति को आड़े हाथ लिया जाता है। शराबबंदी वास्तव में सामाजिक पहल है, जिसमें सभी को मिलकर सफलता के लिए प्रयास करने चाहिए, लेकिन यहां जो विपक्ष में रहता है या जो सत्तापक्ष से नाराज रहता है, उसके लिए ही यह बड़ा मामला है। संविधान निर्माताओं ने बार-बार इशारा किया था कि कानून में समस्या नहीं है, वास्तव में सफलता कानून को लागू करने वालों पर निर्भर है।
अच्छे लोग किसी कानून को मिलकर कामयाब बना देते हैं और बुरे लोग मिल जाएं, तो एक अच्छा कानून भी बेमतलब हो जाता है। शराबबंदी के प्रति मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दृढ़ता काबिलेगौर है, पर कई बार ऐसा क्यों लगता है कि बिहार में केवल वही शराबबंदी के लिए लड़ रहे हैं? यह बात छिपी नहीं है कि न्यायपालिका भी कई बार इस कानून के प्रतिकूल रही है। राज्य में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच इस मुद्दे पर खींचतान नई नहीं है। विधायिका भी बंटी हुई है। वहां भाजपा अब शराबबंदी अभियान को विफल मानती है और सत्तापक्ष के अंदर भी शराबबंदी का विरोध है।
कांग्रेस भी समीक्षा के पक्ष में बताई जाती है। बिहार के पूर्व मंत्री और राजद विधायक सुधाकर सिंह ने भी शराबबंदी का विरोध करते हुए कह दिया कि किसी भी खाद्य पदार्थ या पेय पदार्थ पर प्रतिबंध लगाना मानसिक दिवालियापन है। वैसे, यह सोच नई नहीं है, सामाजिक या राजनीतिक चिंतकों की एक धारा है, जो मानती है कि सरकार नशे पर लगाम नहीं लगा सकती, आपको लोगों को जागरूक करते हुए नशे के कारोबार पर प्रहार करना होगा।
मगर क्या लोग एकमत हैं? क्या लोग शराब के सेवन को घातक मानते हुए उससे बचने को तैयार हैं? क्या जन-जन के बीच नशा-विरोधी माहौल बनाने के प्रयास हुए हैं? क्या सामाजिक संगठन इस दिशा में लोगों को जागरूक करने के लिए सक्रिय हैं? इसमें शक नहीं कि शराबबंदी से बिहार में अपराधों में कमी आई है, सकारात्मकता बढ़ी है, लेकिन बिहार के लिए संपूर्ण शराबबंदी की चुनौती बहुत बड़ी है।