नई दिल्ली:- प्रसिद्ध निवेशक और विश्लेषक मैरी मीकर ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में खुलासा किया है कि ओपनएआई का चैटजीपीटी गूगल सर्च की तुलना में 5.5 गुना तेजी से बढ़ रहा है। यह रिपोर्ट एआई की दुनिया में एक नए युग की शुरुआत का संकेत देती है जहां चैटबॉट्स पारंपरिक सर्च इंजन को चुनौती दे रहे हैं।
चैटजीपीटी की वृद्धि
चैटजीपीटी ने अपने लॉन्च के बाद से अब तक 365 अरब से अधिक सर्च क्वेरीज़ को संभाला है जो गूगल सर्च की तुलना में 5.5 गुना तेजी से बढ़ रहा है। गूगल सर्च ने इसी मील के पत्थर तक पहुंचने के लिए 11 साल का समय लिया था। यह तेजी से वृद्धि एआई तकनीक की क्षमता को दर्शाती है और यह संकेत देती है कि लोग जानकारी ढूंढने के लिए चैटबॉट्स की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं।
गूगल सर्च के लिए चुनौती
चैटजीपीटी की इस तेजी से वृद्धि ने गूगल सर्च के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की है। गूगल को अब अपनी सर्च सेवाओं में एआई को शामिल करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि वह इस नए युग में प्रतिस्पर्धी बने रह सके। गूगल ने पहले ही अपने सर्च फंक्शन्स में एआई मोड और एआई ओवरव्यूज को शामिल करना शुरू कर दिया है।
भारत में एआई की संभावनाएं
मैरी मीकर की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत एआई कंपनियों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार है। चैटजीपीटी के लिए भारत दूसरा सबसे बड़ा बाजार है और यहां इसके मोबाइल ऐप उपयोगकर्ताओं की संख्या 13.5 प्रतिशत है, जो अमेरिका (8.9 प्रतिशत) और जर्मनी (3 प्रतिशत) से अधिक है। यह आंकड़ा भारत में एआई की संभावनाओं को उजागर करता है और यह दर्शाता है कि कैसे देश में डिजिटल क्रांति तेजी से आगे बढ़ रही है।
ओपन-सोर्स और क्लोज़्ड एआई मॉडल्स के बीच प्रतिस्पर्धा
रिपोर्ट में ओपन-सोर्स और क्लोज़्ड एआई मॉडल्स के बीच की प्रतिस्पर्धा पर भी चर्चा की गई है। ओपन-सोर्स मॉडल्स जैसे कि मेटा का लामा और मिस्ट्रल का मिक्सट्रल स्टार्टअप्स, अकादमिक और सरकारों के लिए सुलभ हैं जबकि क्लोज़्ड मॉडल्स जैसे कि ओपनएआई का जीपीटी-4 और एंथ्रोपिक का क्लॉड कंज्यूमर मार्केट शेयर और बड़े उद्यम अपनाने में आगे हैं। यह प्रतिस्पर्धा एआई की दुनिया में नवाचार और विकास को बढ़ावा दे रही है।
मैरी मीकर की रिपोर्ट एआई की दुनिया में एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत देती है। चैटजीपीटी की तेजी से वृद्धि और भारत में एआई की संभावनाएं इस तकनीक के भविष्य के बारे में उत्साहजनक हैं। हालांकि गूगल सर्च के लिए यह एक बड़ी चुनौती है और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ये दोनों तकनीकें कैसे विकसित होती हैं और उपयोगकर्ताओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए कैसे अनुकूलित होती हैं।