नई दिल्ली :- भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और नियुक्तियों की प्रक्रिया को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा जजों की नियुक्ति में की गई मनमानी भारतीय न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
गवई ने बताया कि नेहरू सरकार ने दो बार सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों को नजरअंदाज किया, केवल इसलिए क्योंकि नियुक्ति का अंतिम निर्णय कार्यपालिका के हाथ में था। उन्होंने इस उदाहरण को यह समझाने के लिए दिया कि क्यों न्यायपालिका को कार्यपालिका से स्वतंत्र रहना चाहिए।
CJI गवई के इस बयान ने न्यायिक नियुक्तियों में कोलेजियम सिस्टम की प्रासंगिकता को दोबारा उजागर किया है। उन्होंने कहा कि अगर न्यायाधीश स्वतंत्र नहीं रहेंगे, तो आम जनता को निष्पक्ष न्याय मिलने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
इस बयान से एक बार फिर यह बहस तेज हो गई है कि क्या कार्यपालिका को न्यायिक नियुक्तियों में दखल देना चाहिए, या फिर इसे पूरी तरह से न्यायपालिका पर छोड़ देना चाहिए।