मुंबई(महाराष्ट्र):- एप्पल ने यूरोपीय संघ (ईयू) के एक आदेश को चुनौती देने के लिए एक कानूनी लड़ाई शुरू की है, जिसमें उसे अपने बंद पारिस्थितिकी तंत्र को प्रतिद्वंद्वियों के लिए खोलने की आवश्यकता है। ईयू के इस आदेश का उद्देश्य बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों की शक्ति को नियंत्रित करना है और एप्पल को अपने प्रतिद्वंद्वियों को अपनी तकनीक और मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम तक पहुंच प्रदान करने की आवश्यकता है।
क्या है ईयू का आदेश?
ईयू के आदेश के अनुसार एप्पल को निम्नलिखित कार्य करने होंगे :
– प्रतिद्वंद्वियों को तकनीक तक पहुंच प्रदान करना: एप्पल को अपने प्रतिद्वंद्वियों, जैसे कि स्मार्टफ़ोन, हेडफ़ोन और वर्चुअल रियलिटी हेडसेट निर्माताओं को अपनी तकनीक तक पहुंच प्रदान करनी होगी ताकि वे एप्पल के आईफ़ोन और आईपैड के साथ जुड़ सकें।
– एप्लिकेशन डेवलपर्स के अनुरोधों का जवाब देना: एप्पल को एप्लिकेशन डेवलपर्स के अनुरोधों का जवाब देने के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया और समयसीमा प्रदान करनी होगी।
– “टैप टू पे” प्रणाली को खोलना: एप्पल को अपनी “टैप टू पे” प्रणाली को प्रतिद्वंद्वियों के लिए खोलना होगा जो एक अलग एंटीट्रस्ट मामले में ईयू द्वारा स्वीकृत एक वचन है।
एप्पल की चुनौती
एप्पल ने ईयू के आदेश को चुनौती देते हुए कहा है कि यह आदेश अविवेकपूर्ण है और नवाचार को बाधित करता है। एप्पल का तर्क है कि ईयू के आदेश से उसकी उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता कम हो जाएगी और उपयोगकर्ताओं के अनुभव पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
कानूनी लड़ाई
एप्पल और ईयू के बीच यह कानूनी लड़ाई वर्षों तक चल सकती है लेकिन तब तक एप्पल को ईयू के आदेश का पालन करना होगा। यह लड़ाई न केवल एप्पल के लिए बल्कि पूरे प्रौद्योगिकी उद्योग के लिए महत्वपूर्ण होगी क्योंकि यह निर्धारित करेगी कि बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों को अपने पारिस्थितिकी तंत्र को प्रतिद्वंद्वियों के लिए खोलने की आवश्यकता है या नहीं। एप्पल और ईयू के बीच यह कानूनी लड़ाई प्रौद्योगिकी उद्योग के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि एप्पल और ईयू के बीच यह लड़ाई कैसे आगे बढ़ती है और इसका परिणाम क्या होगा।