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अमेरिका का ‘Golden Dome’ डिफेंस सिस्टम: वैश्विक सुरक्षा की दिशा में बड़ा कदम या चीन पर रणनीतिक दबाव?

वाशिंगटन:- दुनिया की सबसे ताकतवर सैन्य शक्ति अमेरिका ने हाल ही में एक नई मिसाइल रक्षा प्रणाली की घोषणा की है, जिसे ‘गोल्डन डोम’ नाम दिया गया है। अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस महत्वाकांक्षी योजना ने न केवल अमेरिका की सुरक्षा नीति में एक नया अध्याय जोड़ा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक संतुलन पर भी असर डालना शुरू कर दिया है। खासतौर पर चीन और रूस जैसे देशों की नजर इस परियोजना पर टिकी है, जो इसे एक संभावित खतरे के रूप में देख रहे हैं।

क्या है ‘Golden Dome’ सिस्टम?

‘गोल्डन डोम’ अमेरिका का प्रस्तावित मिसाइल डिफेंस प्रोग्राम है, जो मल्टी-लेयर सुरक्षा प्रणाली पर आधारित होगा। इसका उद्देश्य अमेरिका की सीमाओं को बैलिस्टिक मिसाइल, क्रूज मिसाइल और ड्रोन जैसे हवाई खतरों से बचाना है। यह सिस्टम थाड (THAAD), पैट्रियट और एगिस जैसे मौजूदा रक्षा सिस्टम का उन्नत रूप हो सकता है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और हाई-स्पीड इंटरसेप्टर तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा।

इस प्रणाली की सबसे बड़ी खासियत यह होगी कि यह किसी भी दिशा से आने वाली मिसाइल को रियल टाइम में ट्रैक कर उसे हवा में ही नष्ट कर सकेगी। ट्रंप ने इस प्रोजेक्ट को ‘अमेरिका की रक्षा की अदृश्य ढाल’ करार दिया है, जो देश को भविष्य के सभी संभावित हमलों से पूरी तरह सुरक्षित बनाएगी।

चीन और रूस की चिंता क्यों बढ़ी?

चीन पहले ही अमेरिका की इंडो-पैसिफिक नीति और ताइवान को लेकर उसकी सक्रियता से असहज है। अब ‘गोल्डन डोम’ जैसे सिस्टम के आने से उसकी चिंता और भी गहराई है। इससे चीन को आशंका है कि अमेरिका केवल रक्षा नहीं, बल्कि रणनीतिक रूप से आक्रामक रुख भी अपना सकता है। वहीं रूस भी नाटो विस्तार और मिसाइल डिफेंस से परेशान है। गोल्डन डोम जैसी प्रणाली उसे रणनीतिक असंतुलन की ओर धकेल सकती है।

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