नई दिल्ली :- सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में न्यायमूर्ति बीआर गवई ने सोमवार को एक सुनवाई के दौरान न्यायिक व्यवस्था पर उठते सवालों को लेकर कड़ा रुख अपनाया। गर्मियों की छुट्टियों के दौरान भी पांच वरिष्ठ न्यायाधीश लगातार काम कर रहे हैं, फिर भी न्याय में देरी का ठीकरा सिर्फ न्यायपालिका पर फोड़ा जाना, CJI गवई को खल गया।
“हम तो कोर्ट चला रहे हैं, पर वकील ही तैयार नहीं”
न्यायमूर्ति गवई ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “हमारी ओर से तो कोई कोताही नहीं है। हम जज छुट्टियों में भी काम कर रहे हैं, लेकिन वकील ही तैयार नहीं हैं बहस के लिए। फिर भी कहा जाता है कि न्यायपालिका काम नहीं कर रही।” यह बयान उस वक्त आया जब एक वकील ने यह कहते हुए मामले को स्थगित करने की मांग की कि छुट्टियों में केस लेना उचित नहीं।
न्यायपालिका पर सवाल, लेकिन जिम्मेदारी किसकी?
देशभर में लंबित मामलों की संख्या लाखों में है। अदालतें समय पर सुनवाई नहीं करतीं, ऐसा आरोप आम हो गया है। लेकिन CJI गवई के मुताबिक, अदालतें जब काम करने को तैयार हैं, तब अधिवक्ता सहयोग नहीं करते। ऐसी स्थिति में सिर्फ न्यायपालिका को दोष देना कहां तक न्यायसंगत है?
जजों का समर्पण बनाम वकीलों की तैयारी
गवई के इस बयान से यह साफ हो गया कि न्यायाधीश अपना दायित्व निभा रहे हैं, चाहे वे छुट्टियों में हों या नहीं। लेकिन न्यायिक प्रक्रिया दो पक्षों से बनती है — bench और bar। यदि बार यानी वकील समुदाय सक्रिय भागीदारी नहीं करेगा, तो पूरी प्रक्रिया बाधित हो जाती है।
न्यायपालिका की छवि और वास्तविकता में फर्क
यह टिप्पणी एक बड़े सवाल को जन्म देती है — क्या न्याय में देरी की पूरी जिम्मेदारी न्यायपालिका की है? या फिर हमें यह भी देखना चाहिए कि वकीलों की भूमिका, सुनवाई में टालमटोल और तैयारियों की कमी भी इसके लिए जिम्मेदार है?