नई दिल्ली:- देश की न्यायपालिका व्यवस्था से जुड़ा एक अहम और ऐतिहासिक निर्णय सामने आया है। अब उच्च न्यायालय (High Court) से रिटायर होने वाले सभी जजों को समान पेंशन का लाभ मिलेगा, चाहे उन्होंने स्थायी (Permanent) जज के रूप में अपनी सेवा दी हो या एडिशनल (Additional) जज के रूप में। यह फैसला न्यायिक सेवा से जुड़े कई वर्षों से लंबित एक असमानता को समाप्त करता है।
क्या था अब तक का नियम?
अब तक पेंशन निर्धारण में यह देखा जाता था कि कोई जज स्थायी नियुक्ति पर था या एडिशनल। एडिशनल जजों को पेंशन में कई बार पूर्ण लाभ नहीं मिल पाते थे, जिससे सेवा देने के बाद भी उन्हें वित्तीय असमानता का सामना करना पड़ता था। कई एडिशनल जज जिन्हें कुछ वर्षों के लिए नियुक्त किया गया था, बाद में स्थायी जज नहीं बन पाए, या उनसे पहले ही सेवा समाप्त कर दी गई, उन्हें पेंशन और रिटायरमेंट बेनिफिट्स में कटौती झेलनी पड़ती थी।
अब क्या होगा नया बदलाव?
न्याय विभाग की ओर से जारी किए गए नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, अब एडिशनल जजों को भी उतनी ही पेंशन दी जाएगी जितनी स्थायी जजों को दी जाती है, बशर्ते उन्होंने हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में अपना कार्यकाल पूर्ण किया हो और संवैधानिक रूप से सेवा दी हो।
यह परिवर्तन “समान कार्य के लिए समान वेतन” के सिद्धांत को न्यायपालिका में लागू करता है। अब सेवा की प्रकृति या पदनाम के आधार पर पेंशन में कोई भेदभाव नहीं होगा।
क्या होगा इसका असर?
1. सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को आर्थिक राहत: अब एडिशनल जजों को भी पूरी पेंशन मिलेगी, जिससे उन्हें और उनके परिवार को वृद्धावस्था में सम्मानजनक जीवन जीने में सहूलियत होगी।
2. भविष्य के न्यायाधीशों को प्रेरणा: न्यायपालिका में सेवा देने वाले नए जजों को यह भरोसा मिलेगा कि चाहे उनकी नियुक्ति स्थायी हो या एडिशनल, उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद समान पेंशन सुविधाएं मिलेंगी।
3. न्यायिक प्रणाली में विश्वास मजबूत होगा: यह फैसला न्यायिक व्यवस्था में समानता और निष्पक्षता को दर्शाता है, जिससे लोगों का विश्वास और अधिक मजबूत होगा।
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