इस्लामाबाद :- हाल ही में भारत द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर की गूंज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सुनाई दी। इस ऑपरेशन के दौरान भारत ने सीमापार मौजूद आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया, जिनमें जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर के परिवार के कई सदस्य मारे गए। अब पाकिस्तान सरकार द्वारा अजहर को 14 करोड़ रुपये का मुआवजा देने की खबरें सामने आ रही हैं, जिसने नई बहस को जन्म दे दिया है।
क्या है मामला?
सूत्रों के मुताबिक, भारत के ऑपरेशन सिंदूर के जवाब में पाकिस्तान की सरकार ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को हुए “नुकसान” की भरपाई करने के लिए मसूद अजहर को 14 करोड़ रुपये मुआवजा देने का निर्णय लिया है। कहा जा रहा है कि अजहर के घर और परिवार को ऑपरेशन के दौरान भारी नुकसान हुआ था, जिसे पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा एजेंसी की सिफारिश पर ‘ह्यूमेनिटेरियन कॉम्पनसेशन’ के तहत मुआवजा स्वरूप यह रकम दी जा रही है।
पाकिस्तान पर उठे सवाल
यह खबर सामने आते ही पाकिस्तान के ऊपर एक बार फिर आतंकवाद के संरक्षक होने के आरोप लगने लगे हैं। सवाल यह है कि एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित आतंकी संगठन के सरगना को आखिर पाकिस्तान सरकार क्यों और कैसे मुआवजा दे सकती है? क्या यह सीधे-सीधे आतंकवाद को राज्य प्रायोजित समर्थन नहीं माना जाएगा?
भारत ने इस मामले को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने की बात कही है। विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह निर्णय बताता है कि पाकिस्तान अब भी आतंकवाद को पालने-पोसने का काम कर रहा है और उसके खिलाफ की गई कार्रवाई को “नुकसान” समझता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र और एफएटीएफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) जैसे वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान पहले ही ग्रे लिस्ट में रह चुका है। अब मसूद अजहर जैसे आतंकी को मुआवजा देने की योजना से उसकी मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। यदि यह साबित हो जाता है कि सरकार की ओर से यह भुगतान किया गया है, तो पाकिस्तान को फिर से एफएटीएफ की निगरानी सूची में डाला जा सकता है।
पाकिस्तान की सफाई
हालांकि अभी तक पाकिस्तान सरकार की ओर से इस विषय में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन मीडिया में लीक हुई रिपोर्ट्स और खुफिया सूत्र इस खबर की पुष्टि कर रहे हैं। वहीं, पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के कुछ अधिकारियों का कहना है कि यह “सामान्य नागरिक नुकसान” की श्रेणी में आता है, जिसे मीडिया गलत तरीके से पेश कर रहा है।