नई दिल्ली :- भारत के न्यायिक इतिहास में एक और महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ गया है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीशों में शुमार जस्टिस बी. आर. गवई ने सोमवार को देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ग्रहण की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक गरिमामयी समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
जस्टिस गवई का कार्यकाल भले ही केवल छह महीने का होगा, लेकिन उनकी न्यायिक दृष्टि और फैसलों ने पहले ही उन्हें एक प्रभावशाली न्यायाधीश के रूप में स्थापित कर दिया है। वे देश के पहले दलित समुदाय से आने वाले दूसरे मुख्य न्यायाधीश बने हैं, जिससे न्यायपालिका में सामाजिक समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत भी मिलता है।
न्याय के प्रतीक बने गवई
जस्टिस बी. आर. गवई ने अपने न्यायिक करियर के दौरान कई अहम और संवेदनशील मामलों की सुनवाई की है। हाल ही में उन्होंने ‘बुलडोजर कार्रवाई’ पर एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राज्य सरकारों को यह निर्देश दिया था कि बिना कानूनी प्रक्रिया के किसी भी नागरिक की संपत्ति को गिराना संविधान के खिलाफ है। इस फैसले को मानवाधिकारों की रक्षा की दिशा में एक मजबूत कदम माना गया और उनकी न्यायप्रिय छवि को और बल मिला।
सामान्य पृष्ठभूमि से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर
जस्टिस गवई का जीवन संघर्ष और समर्पण की मिसाल है। महाराष्ट्र के एक सामान्य परिवार में जन्मे गवई ने नागपुर विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट से अपने वकालत के करियर की शुरुआत की और बाद में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए। अपने न्यायिक कार्यकाल में उन्होंने विभिन्न संवैधानिक, नागरिक, और आपराधिक मामलों में कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए।
समाज के अंतिम व्यक्ति तक न्याय
जस्टिस गवई को हमेशा उन फैसलों के लिए जाना गया जो समाज के वंचित, कमजोर और जरूरतमंद तबकों की आवाज बने। वे न्यायपालिका की उस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं जहां “न्याय केवल कानून की किताबों तक सीमित न रहकर जनमानस तक पहुंचे।”
एक न्यायिक दृष्टिकोण से आगे
उनका कार्यकाल भले ही अल्पकालिक हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के भीतर लंबित मामलों के त्वरित निपटान और संवेदनशील मुद्दों पर निष्पक्ष फैसले की अपेक्षा न्यायिक जगत उनसे कर रहा है।