जम्मू-कश्मीर:- पोखरण और जम्मू-कश्मीर में हाल ही में हुए सुरक्षा घटनाक्रम ने एक बार फिर भारत-पाकिस्तान सीमा तनाव को उजागर कर दिया है। सोमवार रात पाकिस्तान द्वारा भारतीय सीमा में ड्रोन भेजे गए, जिन्हें भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम ने आसमान में ही मार गिराया। रक्षा सूत्रों के अनुसार ये ड्रोन पोखरण क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश कर रहे थे, लेकिन चौकस सुरक्षा बलों ने उन्हें हवा में ही आग का गोला बना दिया। जम्मू क्षेत्र में भी उस रात जोरदार धमाकों की आवाजें सुनाई दीं। इन धमाकों के पीछे भारतीय वायु रक्षा प्रणाली द्वारा किए गए इंटरसेप्शन थे जो अंधेरे में पाकिस्तानी ड्रोन को निशाना बना रहे थे।
हमले के समय पूरे इलाके में ब्लैकआउट कर दिया गया था ताकि किसी भी संभावित खतरे से नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। स्थानीय लोगों ने बताया कि आसमान में लाल-पीली रोशनी और धमाकों की गूंज ने माहौल को युद्ध जैसा बना दिया।इन घटनाओं ने जहां भारतीय रक्षा व्यवस्था की तत्परता को साबित किया है वहीं देश में अग्निवीर योजना पर भी बहस छिड़ गई है। इस योजना के तहत सेना में चार साल के लिए भर्ती किए गए युवा सैनिक—जिन्हें अग्निवीर कहा जाता है—फिलहाल सीमाओं पर तैनात होकर देश की रक्षा कर रहे हैं। परंतु इन बहादुर जवानों को अभी तक पक्की सरकारी नौकरी का दर्जा नहीं मिला है।
समाज के कई वर्गों और युवाओं में यह मांग तेज हो रही है कि सरकार को इन अग्निवीरों को स्थायी रूप से नियुक्त करना चाहिए। वे युवा जो सामान्य ट्रेनों में धक्के खाते हुए सफर करते हैं, जिन्हें वीआईपी सुविधाएं नहीं मिलतीं जो बसों में खड़े होकर ड्यूटी पर जाते हैं—आज वही देश के लिए सीने पर गोलियां खाने को तैयार हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि अभी तक किसी नेता का बेटा युद्ध के मैदान में शहीद नहीं हुआ। ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या सिर्फ गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे ही देशभक्ति का बोझ उठाएंगे?जनता की आवाज़ अब बुलंद होती जा रही है कि अग्निवीरों को केवल चार साल की नौकरी तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि उनकी बहादुरी और देश सेवा को देखते हुए उन्हें स्थायी सेवा का अवसर दिया जाना चाहिए। यह न केवल उनकी सुरक्षा और भविष्य के लिए जरूरी है, बल्कि देश की सैन्य शक्ति को भी मजबूती देगा।