नई दिल्ली : राशन कार्ड वास्तव में गरीबों की मदद करने के बजाय “लोकप्रियता” के लिए गुप्त रूप से इस्तेमाल किए जा रहे हैं। कोर्ट ने आश्चर्य जताया कि क्या सब्सिडी वास्तव में उन लोगों तक पहुंच रही है जिन्हें वास्तव में इसकी जरूरत है।
इस मुद्दे को उठाते हुए जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस विरोधाभास पर ध्यान दिया कि एक तरफ राज्य इस बात का बखान कर रहे हैं कि विकास के आधार पर देश में प्रति व्यक्ति आय कैसे बढ़ रही है लेकिन साथ ही वे सब्सिडी के बारे में बात करते हुए चाहते हैं कि उनकी 75% आबादी बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) हो। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि सही लाभार्थियों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बताया कि देश की आय असमानता इतनी खराब है कि प्रति व्यक्ति आय के आंकड़ों को कुछ वर्ग के लोगों द्वारा विकृत किया गया है, जबकि लाखों लोग घोर गरीबी का सामना कर रहे हैं। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि चूंकि 2021 में कोई जनगणना नहीं हुई है इसलिए मुफ्त राशन की ज़रूरत वाले 10 करोड़ लोगों को बाहर रखा जा रहा है।
हालांकि, सरकार ने अपनी पहल का बचाव किया और बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 81.35 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिलता है और 11 करोड़ अतिरिक्त लोगों को एक विशेष योजना के तहत राशन दिया जा रहा है।