नई दिल्ली:- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2024-25 के अप्रैल-जनवरी अवधि में भारत में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। इस दौरान शुद्ध एफडीआई घटकर मात्र 1.4 बिलियन डॉलर रह गया है जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 21.2 बिलियन डॉलर था। हालांकि सकल एफडीआई में 12.4 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है जो 60.4 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है।
शुद्ध एफडीआई में गिरावट का कारण
शुद्ध एफडीआई में इतनी बड़ी गिरावट के कई कारण हैं। पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि इस अवधि में एफडीआई से संबंधित विनिवेश और प्रत्यावर्तन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। विदेशी निवेशकों ने अपनी निवेशित पूंजी को वापस निकालना शुरू कर दिया है जिससे शुद्ध एफडीआई में कमी आई है। इसके अतिरिक्त वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक तनावों ने भी निवेशकों को सतर्क रहने के लिए प्रेरित किया है जिससे नए निवेश में कमी आई है। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार इक्विटी पूंजी, पुनर्निवेशित आय और अन्य पूंजी सहित एफडीआई में कुल मिलाकर गिरावट दर्ज हुई है।
सकल एफडीआई में वृद्धि: एक सकारात्मक संकेत
हालांकि शुद्ध एफडीआई में गिरावट चिंता का विषय है लेकिन सकल एफडीआई में 12.4 प्रतिशत की वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है। यह दर्शाता है कि विदेशी निवेशक अभी भी भारत में निवेश करने में रुचि रखते हैं। सकल एफडीआई में वृद्धि विभिन्न क्षेत्रों में हुई है जिसमें विनिर्माण, सेवाएँ और प्रौद्योगिकी शामिल हैं। सरकार द्वारा उठाए गए सुधारों और नीतियों ने भी विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
क्षेत्रीय विश्लेषण
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार एफडीआई का अधिकांश हिस्सा विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में आया है। प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी निवेश में वृद्धि देखी गई है जो भारत के डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास को दर्शाता है। सिंगापुर, अमेरिका, मॉरीशस और नीदरलैंड भारत में एफडीआई के प्रमुख स्रोत बने हुए हैं।
आर्थिक प्रभाव
शुद्ध एफडीआई में गिरावट का भारतीय अर्थव्यवस्था पर मिश्रित प्रभाव पड़ेगा। एक ओर इससे विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ सकता है और रुपये के मूल्य में गिरावट आ सकती है। दूसरी ओर, सकल एफडीआई में वृद्धि से रोजगार सृजन और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। सरकार को एफडीआई प्रवाह को बनाए रखने के लिए नीतियों को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
सरकार के प्रयास
भारत सरकार ने विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। ‘मेक इन इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसी योजनाओं ने विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया है। सरकार ने एफडीआई नियमों को भी सरल बनाया है और विभिन्न क्षेत्रों में निवेश सीमा को बढ़ाया है। इसके अतिरिक्त, सरकार ने बुनियादी ढांचे के विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया है, जो विदेशी निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है।
भविष्य की संभावनाएँ
भविष्य में भारत में एफडीआई प्रवाह वैश्विक आर्थिक स्थितियों, भू-राजनीतिक कारकों और सरकार की नीतियों पर निर्भर करेगा। यदि सरकार निवेश के अनुकूल माहौल बनाए रखने में सफल रहती है तो एफडीआई प्रवाह में वृद्धि की संभावना है। भारत एक बड़ा और बढ़ता हुआ बाजार है जो विदेशी निवेशकों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना हुआ है।
विशेषज्ञों की राय
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि शुद्ध एफडीआई में गिरावट अस्थायी हो सकती है और सकल एफडीआई में वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है। उन्होंने सरकार से एफडीआई प्रवाह को बनाए रखने के लिए नीतियों को और मजबूत करने का आग्रह किया है। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि भारत को निवेश के लिए एक स्थिर और पारदर्शी नीतिगत ढांचा बनाए रखने की आवश्यकता है।
अप्रैल-जनवरी 2024-25 में शुद्ध एफडीआई में गिरावट और सकल एफडीआई में वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक मिश्रित संकेत है। सरकार को एफडीआई प्रवाह को बनाए रखने के लिए नीतियों को और मजबूत करने की आवश्यकता है। भारत में विदेशी निवेश को आकर्षित करने की अपार क्षमता है, और यदि सही नीतियां लागू की जाती हैं, तो भारत एक प्रमुख वैश्विक निवेश गंतव्य बन सकता है।