श्रीनगर (जम्मू):- जम्मू-कश्मीर में शिक्षा व्यवस्था की हालत बद से बदतर होती जा रही है। सरकार के अपने आंकड़ों के अनुसार, केंद्र शासित प्रदेश में कुल 8311 शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं जिससे लाखों छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है। इन खाली पदों में से 4325 पद जम्मू क्षेत्र में और 3986 पद कश्मीर घाटी में हैं। शिक्षकों की भारी कमी से न केवल छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
शिक्षा विभाग के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार जम्मू क्षेत्र में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है। सबसे अधिक प्रभावित जिले जम्मू, राजौरी, पुंछ, डोडा और उधमपुर हैं। इन जिलों के दूरदराज के इलाकों में स्थिति और भी गंभीर है जहां एक-एक शिक्षक को कई कक्षाओं को संभालना पड़ रहा है। कश्मीर घाटी में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। यहां श्रीनगर, बारामूला, अनंतनाग, कुपवाड़ा और पुलवामा जिलों में शिक्षकों की भारी कमी है। विशेष रूप से सर्दियों के मौसम में दूरदराज के इलाकों में शिक्षकों की अनुपस्थिति से छात्रों की पढ़ाई पूरी तरह से ठप हो जाती है।
शिक्षकों की कमी के कारण:
– नियमित भर्तियां न होना: पिछले कई वर्षों से शिक्षा विभाग में शिक्षकों की नियमित भर्तियां नहीं हुई हैं। इसके चलते, सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों के स्थान पर नए शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाई है।
– स्थानांतरण नीति: शिक्षा विभाग की स्थानांतरण नीति भी शिक्षकों की कमी का एक बड़ा कारण है। कई शिक्षक दूरदराज के इलाकों में जाने से कतराते हैं, जिसके चलते इन इलाकों में शिक्षकों की कमी बनी रहती है।
– राजनीतिक हस्तक्षेप: शिक्षा विभाग में राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण भी शिक्षकों की नियुक्तियों में देरी होती है। कई बार राजनीतिक कारणों से योग्य उम्मीदवारों की जगह अयोग्य उम्मीदवारों को नियुक्त कर दिया जाता है।
– बजट की कमी: शिक्षा विभाग को पर्याप्त बजट न मिलने के कारण भी शिक्षकों की भर्तियां नहीं हो पाती हैं।
छात्रों पर प्रभाव:
– पढ़ाई में बाधा: शिक्षकों की कमी के कारण छात्रों की पढ़ाई में भारी बाधा आ रही है। कई विषयों के शिक्षक न होने के कारण छात्रों को बिना पढ़े ही परीक्षा देनी पड़ती है।
– शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट: शिक्षकों की कमी से शिक्षा की गुणवत्ता में भी गिरावट आ रही है। योग्य शिक्षकों के अभाव में छात्रों को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाता है।
– भविष्य पर असर: शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट से छात्रों के भविष्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है। वे प्रतियोगी परीक्षाओं में पिछड़ जाते हैं और उन्हें बेहतर रोजगार के अवसर नहीं मिल पाते हैं।
-मानसिक तनाव: छात्र और अभिभावक दोनों ही शिक्षकों की कमी के चलते मानसिक तनाव में हैं।
अभिभावकों की चिंता:
अभिभावकों का कहना है कि शिक्षकों की कमी के कारण उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो रहा है। उन्होंने सरकार से जल्द से जल्द शिक्षकों की भर्ती करने की मांग की है। अभिभावकों ने यह भी कहा कि अगर सरकार ने जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं किया तो उन्हें सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
सरकार का रुख:
शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकार शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए गंभीर प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि जल्द ही शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाएगी। अधिकारियों ने यह भी कहा कि स्थानांतरण नीति में भी बदलाव किया जाएगा ताकि दूरदराज के इलाकों में शिक्षकों की कमी को दूर किया जा सके।
विपक्ष का हमला:
विपक्षी दलों ने सरकार पर शिक्षा व्यवस्था को लेकर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि सरकार की गलत नीतियों के कारण ही आज शिक्षा व्यवस्था इतनी बदहाल हो गई है। विपक्षी दलों ने सरकार से जल्द से जल्द शिक्षकों की भर्ती करने और शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने की मांग की है।
स्थानीय नागरिकों की प्रतिक्रिया:
स्थानीय नागरिकों में सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है। उनका कहना है कि सरकार शिक्षा व्यवस्था को लेकर गंभीर नहीं है। उन्होंने सरकार से जल्द से जल्द शिक्षकों की भर्ती करने और शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने की मांग की है। नागरिकों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने उनकी मांगों को नहीं माना तो वे आंदोलन करने के लिए मजबूर होंगे।
जम्मू-कश्मीर में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को तेज किया जाना चाहिए और स्थानांतरण नीति में भी बदलाव किया जाना चाहिए। इसके साथ ही शिक्षा विभाग को पर्याप्त बजट भी मुहैया कराया जाना चाहिए। शिक्षा व्यवस्था में सुधार करके ही छात्रों के भविष्य को सुरक्षित किया जा सकता है।