नई दिल्ली:- भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने फोरक्लोजर शुल्क पर मसौदा नियम जारी किए हैं जो लेंडर्स के लाभ पर असर डाल सकते हैं। आरबीआई ने कहा है कि बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) माइक्रो और स्मॉल एंटरप्राइजेज (एमएसई) को दिए गए फ्लोटिंग रेट टर्म लोन पर फोरक्लोजर शुल्क या प्रीपेमेंट पेनल्टी नहीं ले सकती हैं।
फोरक्लोजर शुल्क: क्या है और क्यों महत्वपूर्ण?
फोरक्लोजर शुल्क, जिसे प्रीपेमेंट पेनल्टी भी कहा जाता है वह शुल्क है जो बैंक या वित्तीय संस्थान उधारकर्ता से लेते हैं जब वह अपने लोन को समय से पहले चुकाता है। यह शुल्क लेंडर्स को उनके ब्याज आय के नुकसान की भरपाई के लिए लगाया जाता है।
आरबीआई के मसौदा नियम का उद्देश्य
आरबीआई के मसौदा नियम का उद्देश्य एमएसई को उनके लोन को समय से पहले चुकाने की अनुमति देना है जिससे वे अपने ब्याज आय को कम कर सकें और अपने व्यवसाय को बढ़ावा दे सकें। यह नियम लेंडर्स को भी पारदर्शिता और ग्राहक-केंद्रितता के माध्यम से ग्राहकों के हितों की रक्षा करने में मदद करेगा।
विश्लेषकों की राय
विश्लेषकों का मानना है कि आरबीआई के मसौदा नियम लेंडर्स के लाभ पर असर डाल सकते हैं। अनिल गुप्ता आईसीआरए के सीनियर वाइस-प्रेसिडेंट ने कहा है कि यह नियम लेंडर्स की आय पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और लोन प्रीपेमेंट और बैलेंस ट्रांसफर में वृद्धि कर सकता है।
आरबीआई के मसौदा नियम फोरक्लोजर शुल्क पर लगाम लगाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है यह नियम एमएसई को उनके लोन को समय से पहले चुकाने की अनुमति देगा और लेंडर्स को पारदर्शिता और ग्राहक-केंद्रितता के माध्यम से ग्राहकों के हितों की रक्षा करने में मदद करेगा। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि यह नियम लेंडर्स के लाभ पर असर डाल सकता है।