पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि टेस्ला के सीईओ एलन मस्क भारत में कारोबार करना चाहते हैं लेकिन भारत में व्यापार करना बहुत कठिन है क्योंकि वहां टैरिफ (आयात शुल्क) बहुत ज्यादा है। ट्रंप का ये बयान तब आया जब अमेरिकी अरबपति व्यवसायी और डीओजीई के प्रमुख एलन मस्क ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, ‘भारत व्यापार के लिए बहुत कठिन देश है क्योंकि वहां दुनिया के सबसे ऊंचे टैरिफ हैं।’ उन्होंने यह भी कहा कि एलन मस्क लंबे समय से इस मुद्दे को लेकर चिंतित हैं और इसे ठीक करना चाहते हैं। बता दें कि पीएम मोदी और एलन मस्क में ब्लेयर हाउस में मुलाकात की थी और ‘अंतरिक्ष, प्रौद्योगिकी और नवाचार’ जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा की।
भारत इन देशों के साथ अपनी मुद्रा में कर रहा व्यापार
यूक्रेन संघर्ष के बाद से भारत और रूस अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं में काफी मात्रा में व्यापार कर रहे हैं लेकिन वहां भी एक्सचेंज दरें अक्सर डॉलर से जुड़ी होती हैं। भारत और यूएई (अब एक ब्रिक्स देश) ने भी रुपये और दिरहम में प्रत्यक्ष व्यापार शुरू कर दिया है। भारत ने एक दर्जन से अधिक देशों के साथ ऐसा द्विपक्षीय तंत्र स्थापित किया है।
चीन और रूस भी डॉलर में नहीं करते बिजनेस
रूस और चीन लोकल करंसी में व्यापार करते हैं. ज्यादा से ज्यादा देश अपनी मुद्राओं में व्यापार करने पर विचार कर रहे हैं। इसके पीछे का कारण बताया गया कि ये महसूस किया गया है कि डॉलर को सिर्फ हथियार बनाया गया है और अन्य देश भी खुद को रूस जैसी ही स्थिति में पा सकते हैं। जब यूक्रेन के साथ युद्ध के दौरान यूरोपीय देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे।
कांग्रेस नेता शशि थरूर का बयान
ट्रंप की ओर से ब्रिक्स देशों पर टैरिफ लगाने की धमकी पर शशि थरूर ने कहा, “मैंने राष्ट्रपति ट्रंप की यह टिप्पणी सुनी हैं लेकिन तथ्य यह है कि ब्रिक्स के लिए डॉलर के लिए वैकल्पिक मुद्रा के साथ आने का कोई गंभीर प्रस्ताव नहीं है। डॉलर दुनिया के अधिकांश देशों के लिए एक व्यावहारिक सुविधा है। इस पर भले ही कुछ चर्चा हुई हो और हमारे पास निश्चित तौर से अतीत में रूस के साथ रुपया-रूबल व्यापार, ईरान के साथ रुपया-रियाल व्यापार और इसी तरह के कुछ उदाहरण हैं। इसलिए एक वैकल्पिक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा को लेकर कहा जा सकता है यह असंभव नहीं है। इसके बावजूद भी मुझे नहीं लगता कि ऐसा करने के लिए कोई खास योजना बनाई गई है। और इसलिए राष्ट्रपति की धमकियां थोड़ी खोखली लगती हैं क्योंकि यह तभी संभव है जब कोई वास्तविक प्रस्ताव सामने आए और भारत जैसे देश इसे गंभीरता से आगे बढ़ाएं। मुझे ऐसे प्रस्ताव के लिए भारतीय सरकार में कोई समर्थन नहीं दिखता। इसलिए जब तक ऐसा नहीं होता, हमें चिंता क्यों करनी चाहिए।”