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भारतीय सहकारी समितियाँ: नई आशा की किरण

नई दिल्ली:- भारतीय सहकारी समितियों ने देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन समितियों ने न केवल किसानों और मजदूरों को आर्थिक सहायता प्रदान की है बल्कि उन्हें सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी सशक्त बनाया है। भारतीय सहकारी समितियों का इतिहास बहुत पुराना है। इन समितियों की शुरुआत 19वीं शताब्दी में हुई थी जब देश में ब्रिटिश शासन था। उस समय इन समितियों का मुख्य उद्देश्य किसानों और मजदूरों को आर्थिक सहायता प्रदान करना था।

आज भारतीय सहकारी समितियों का दायरा बहुत व्यापक हो गया है। इन समितियों में किसानों, मजदूरों, महिलाओं, युवाओं और अन्य वर्गों के लोग शामिल हैं। इन समितियों का मुख्य उद्देश्य अब न केवल आर्थिक सहायता प्रदान करना है बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी लोगों को सशक्त बनाना है। भारतीय सहकारी समितियों की सफलता के पीछे कई कारण हैं। इनमें से एक मुख्य कारण यह है कि इन समितियों में लोगों की भागीदारी बहुत अधिक है। लोग इन समितियों में अपने समय ऊर्जा और संसाधनों का योगदान करते हैं जिससे इन समितियों को मजबूती मिलती है।

एक अन्य महत्वपूर्ण कारण यह है कि भारतीय सहकारी समितियों में नेतृत्व की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। इन समितियों के नेता लोगों को एकजुट करते हैं उन्हें प्रेरित करते हैं और उन्हें सशक्त बनाने के लिए काम करते हैं।भारतीय सहकारी समितियों की सफलता के लिए सरकार की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण है। सरकार ने इन समितियों को विभिन्न प्रकार की सहायता प्रदान की है जैसे कि वित्तीय सहायता तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण।

आज भारतीय सहकारी समितियों का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। इन समितियों में लोगों की भागीदारी बढ़ रही है और इन समितियों की सफलता के लिए सरकार की सहायता भी बढ़ रही है। इन समितियों के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए काम किया जा रहा है जिससे देश का आर्थिक और सामाजिक विकास हो सके। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह के दूरदर्शी नेतृत्व से सशक्त भारत का सहकारी ढांचा विकास के लिए एक प्रेरक मॉडल के रूप में उभरा है। “सहकार से समृद्धि” के दृष्टिकोण को न केवल भारत बल्कि विश्व स्तर पर स्वीकृति मिल रही है।

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