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महाकुंभ की सर्द शाम में सुधा मूर्ति की प्रेरणादायक बातचीत, धर्म और शिक्षा पर साझा किए विचार

प्रयागराज (उत्तर प्रदेश):- देश की चुनिंदा अरबपति महिलाओं में से एक सुधा मूर्ति महाकुंभ में पहली बार शामिल हुईं। अपनी सादगी, सहजता और ज्ञान के लिए जानी जाने वाली सुधा जी ने महाकुंभ की सर्द शाम में नवीन सिंह पटेल के साथ खास बातचीत की। इस दौरान उन्होंने अपने जीवन, धर्म, शिक्षा और समाज सेवा से जुड़े अनमोल अनुभव साझा किए।

सुधा मूर्ति जो इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन और समाजसेवा की मिसाल हैं ने कहा कि पैसे का दिखावा उनके व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं है। उन्होंने बताया कि उनका जीवन शिक्षा और सेवा को समर्पित है। धर्म मेरे लिए वह है जो गिरे हुए को उठाने का काम करे  सुधा जी ने कहा। उनका यह विचार उनके समाज सेवा के कार्यों को परिभाषित करता है।

सुधा मूर्ति ने शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए बताया कि महिलाओं और बच्चों की शिक्षा में निवेश करने से समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा शिक्षा वह हथियार है जिससे हर व्यक्ति अपनी स्थिति बदल सकता है। यह पूछे जाने पर कि उन्होंने इतने बड़े स्तर पर समाजसेवा का काम कैसे शुरू किया उन्होंने इसे अपनी मां से मिली सीख और संस्कारों का परिणाम बताया।

पहली बार महाकुंभ में शामिल होने का अनुभव साझा करते हुए सुधा जी ने कहा कि इस आयोजन ने उन्हें भारत की समृद्ध आध्यात्मिकता और विविधता से परिचित कराया। उन्होंने कहा कि महाकुंभ में आना उनके जीवन का एक अनमोल अनुभव है। यहां आकर मुझे अपने देश की परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर को करीब से देखने का मौका मिला उन्होंने कहा।

सुधा मूर्ति जो स्वयं एक प्रख्यात लेखिका हैं ने बताया कि पढ़ाई और लिखाई उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि लिखने का उद्देश्य उनके लिए केवल कहानियां कहना नहीं है बल्कि समाज को एक दिशा और प्रेरणा देना है। उनकी पुस्तकों में समाज के हर वर्ग की झलक मिलती है और वे युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं।

धर्म को लेकर सुधा जी ने एक अनूठी परिभाषा दी। उन्होंने कहा कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य मानवता की सेवा करना होना चाहिए। धर्म का असली मतलब है उन लोगों को सहारा देना, जो जीवन में गिर चुके हैं  उन्होंने बताया।

महाकुंभ की यह सर्द शाम सुधा मूर्ति के विचारों और उनकी सादगी से गर्मजोशी भरी रही। शिक्षा, धर्म, और समाज सेवा पर उनके दृष्टिकोण ने यह साबित कर दिया कि सच्चा धन वही है जो दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने में उपयोगी हो। उनकी यह बातचीत महाकुंभ के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक माहौल में प्रेरणा का संदेश छोड़ गई।

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