कोलंबो (श्रीलंका):- तंबाकू नियंत्रण नीतियों में भारत की स्थिति को लेकर जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल टोबैको कंट्रोल के वैज्ञानिक स्टीफन टैंपलिन ने कहा कि भारत ने तंबाकू नियंत्रण के लिए कई प्रभावी कदम उठाए हैं लेकिन इन नीतियों को लागू करना मुख्य चुनौती बनकर सामने आया है। उनका मानना है कि अधिक टैक्स लगाकर तंबाकू का उपयोग कम किया जा सकता है लेकिन तंबाकू उद्योग ग्लैमर के प्रतीक के रूप में अपने उत्पादों को पेश करने की कोशिश करता है जिससे उसकी लोकप्रियता बनी रहती है।
भारत में तंबाकू उपभोग की स्थिति गंभीर है। देश में 15 साल और उससे अधिक उम्र के 28.6% लोग और 13 से 15 वर्ष की उम्र के 8.5% बच्चे किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं। इस उपभोग के कारण हर दिन 3500 से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है। स्टीफन टैंपलिन ने यह भी कहा कि तंबाकू उद्योग अक्सर सरकारों से यह तर्क देती है कि इससे प्राप्त होने वाला राजस्व स्वास्थ्य संकट के मुकाबले बहुत कम है लेकिन तंबाकू से होने वाला नुकसान इस राजस्व से कहीं अधिक है।
यह बातें उन्होंने 2024 साउथ एशिया टोबैको लीडरशिप प्रोग्राम के दौरान कहीं जो जॉन्स हॉपकिंस के इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल टोबैको कंट्रोल द्वारा आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में सीनियर एडिटर स्कन्द विवेक धर ने टैंपलिन से तंबाकू नियंत्रण के उपायों और उनकी चुनौतियों पर विस्तार से बातचीत की।
भारत में तंबाकू नियंत्रण नीति की सफलता का हिस्सा यह है कि कई राज्यों में तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ाए गए हैं और सार्वजनिक स्थानों पर तंबाकू सेवन पर प्रतिबंध लगाया गया है। फिर भी कार्यान्वयन में असमानताएँ और तंबाकू उद्योग की विपणन रणनीतियाँ इन प्रयासों को प्रभावित करती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को तंबाकू के स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभावों को गंभीरता से लेते हुए इन नीतियों को और प्रभावी तरीके से लागू करना होगा।