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जलवायु परिवर्तन से बढ़ी जंगलों की आग: कम बारिश, बढ़ती गर्मी और मानव गतिविधियां जिम्मेदार

जलवायु परिवर्तन के कारण जंगलों में आग के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं खासकर पहाड़ी इलाकों में। कम बारिश और बढ़ती गर्मी ने आग की स्थिति को और बिगाड़ दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि मानव गतिविधियां गलत वानिकी पद्धतियां और ऐतिहासिक वानिकी प्रथाएं भी जंगलों में आग के बढ़ते मामलों का कारण बन रही हैं।

उत्तर भारत और हिमालयी क्षेत्र में बढ़ी आग की घटनाएं

उत्तर भारत विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में जंगलों की आग के मामले बढ़े हैं। इन क्षेत्रों में विशेष रूप से शुष्क मौसम और तापमान में वृद्धि से आग लगने की घटनाएं अधिक हो रही हैं। हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ सालों में आग के कारण हजारों हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं। उत्तराखंड में भी कई बार आग ने भयंकर रूप लिया जिससे जंगलों के इकोसिस्टम को नुकसान हुआ है।

अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभाव

जंगलों में आग से होने वाली क्षति न केवल तत्काल खतरे को जन्म देती है बल्कि इसके दीर्घकालिक प्रभाव भी होते हैं। जंगलों में आग से प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है जो जलवायु परिवर्तन को और बढ़ावा देता है। आग के कारण जैव विविधता का भी भारी नुकसान होता है और बहुत से दुर्लभ वन्यजीवों की प्रजातियाँ संकट में पड़ जाती हैं। इसके अलावा इन क्षेत्रों में निवास करने वाले समुदायों के लिए यह आर्थिक संकट का कारण बनता है क्योंकि जंगल स्थानीय लोगों की आजीविका का प्रमुख स्रोत होते हैं।

आवश्यक कदम

विशेषज्ञों का कहना है कि जंगलों की आग को रोकने के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों को तत्काल लागू करना होगा। इसके साथ ही बेहतर वानिकी प्रथाओं और समुदाय-आधारित जागरूकता की आवश्यकता है ताकि आग की घटनाओं को कम किया जा सके।

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