भोपाल (मध्यप्रदेश):- आज से 40 साल पहले, 3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल में एक ऐसी त्रासदी हुई जिसने न सिर्फ शहर बल्कि देशभर को हिला दिया। भोपाल के बैरसिया इलाके में स्थित यूनियन कार्बाइड के कारखाने से जहरीली गैस MIC (मिथाइल आइसोसाइनाइट) रिसकर हवा में फैल गई। यह गैस न केवल हजारों लोगों की जान ले गई बल्कि सैकड़ों लोगों को जीवनभर के लिए विकलांग बना गई।
वो काली रात गैस रिसने से मौत का तांडव
3 दिसंबर 1984 की रात को जब भोपालवासी गहरी नींद में थे गैस का रिसाव शुरू हो गया था। जैसे ही गैस ने हवा में फैलना शुरू किया लोग सोते हुए ही इस खतरनाक रसायन के संपर्क में आ गए। कई लोग गैस के प्रभाव से तड़पते हुए मरे जबकि अन्य भागने की कोशिश में हांफते-हांफते जिंदगी की जंग हार गए। यह त्रासदी रातभर चली और इसके प्रभाव से सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा बैठे।
मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन और भगाने का विवाद
यूनियन कार्बाइड के मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन पर गैस रिसाव के लिए जिम्मेदारी थी। वह हादसे के तुरंत बाद भारत से भाग गए और उन्हें कभी भी भारत लाकर सजा नहीं दिलाई जा सकी। इस मामले में सरकार की निष्क्रियता और कानूनी विफलता ने पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए न्याय की उम्मीदों को और भी कमजोर कर दिया।
सरकार का ध्यान जेल में नहीं, हर्जाने पर था
सरकार का ध्यान इस त्रासदी के तत्काल प्रभावों पर कम और हर्जाने पर अधिक था। पीड़ितों और उनके परिवारों को मुआवजा देने की प्रक्रिया लंबे समय तक चलती रही और इसकी राशि भी कई बार विवादों में रही। कई पीड़ितों को सही समय पर मुआवजा नहीं मिला और उन्हें जीवनभर के इलाज और सहायता के लिए संघर्ष करना पड़ा।
पीड़ितों को क्या मिला?
भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को इलाज और हर्जाने के रूप में कुछ राशि दी गई लेकिन यह उनके लिए नाकाफी साबित हुई। कई लोग अभी भी न्याय की मांग कर रहे हैं। आज भी उन पीड़ितों के लिए यह सवाल कायम है कि क्या उन्हें कभी पूरी तरह से न्याय मिलेगा। 40 साल बाद भी गैस त्रासदी के पीड़ितों को न तो सही मुआवजा मिला और न ही न्याय की प्रक्रिया पूरी हुई।