नई दिल्ली:- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में प्रजनन दर पर अपनी चिंता जताते हुए तीन बच्चों के होने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका यह बयान भारतीय समाज में जन्म दर की कमी और राष्ट्रीय जनसंख्या नीति पर गहरे प्रभाव डाल सकता है। भागवत ने यह कहा कि परिवारों के पास कम बच्चे होने से समाज और राष्ट्र पर दीर्घकालिक नकरात्मक असर पड़ सकता है खासकर जब देश का कामकाजी वर्ग घटने लगेगा और बुजुर्गों की संख्या बढ़ेगी।
भारत में Total Fertility Rate लगातार घट रही है जो 2019-2021 के आंकड़ों के अनुसार 2.0 के करीब पहुँच गई है। यह दर उस स्तर से नीचे है जिसे संतुलित जनसंख्या के लिए जरूरी माना जाता है। TFR का यह गिरना समाज में आर्थिक और सामाजिक बदलावों का संकेत है। कम जन्म दर का असर वृद्धावस्था के बढ़ते बोझ श्रम बल में कमी और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों पर पड़ने वाला दबाव बढ़ सकता है।
भागवत के बयान को विभिन्न विशेषज्ञों ने भारतीय जनसंख्या नीति पर एक गंभीर सवाल उठाते हुए देखा है। वे मानते हैं कि यदि यह दर और घटती रही तो आने वाले दशकों में देश में युवा शक्ति की कमी हो सकती है जो रोजगार और विकास के लिए खतरे का कारण बन सकती है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि बढ़ती उम्र का असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा क्योंकि कामकाजी आयु वर्ग की संख्या घटने से आर्थिक विकास धीमा हो सकता है।
हालांकि इस मुद्दे पर विभिन्न राज्य सरकारों और विशेषज्ञों के बीच मतभेद हैं और यह बहस जारी रहेगी कि क्या यह स्थिति देश के लिए स्थायी खतरे का रूप ले सकती है।