नई दिल्ली :- भारत में शैम्पू का इतिहास सदियों पुराना है। यह शब्द संस्कृत के चंपू शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है मसाज या धोने का तरीका। शैम्पू का उपयोग भारत में 15वीं शताब्दी से किया जा रहा था जब लोग अपने बालों और सिर की सफाई के लिए प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल करते थे। उस समय शैम्पू बनाने के लिए आमला, रीठा, शिकाकाई, हिबिस्कस और अन्य औषधीय जड़ी-बूटियों का मिश्रण किया जाता था। यह प्राकृतिक मिश्रण न केवल बालों को साफ करता था बल्कि उन्हें पोषण भी प्रदान करता था और सिर की त्वचा को स्वस्थ रखता था।
भारत में शैम्पू का उपयोग व्यक्तिगत देखभाल का हिस्सा बन चुका था और लोग इसे पारंपरिक रूप से नहाने और सिर धोने के लिए इस्तेमाल करते थे। इन प्राकृतिक सामग्रियों के लाभों का ज्ञान भारतीय संस्कृति और आयुर्वेद से जुड़ा हुआ था।
जब अंग्रेज़ भारत आए तो उन्हें भारतीयों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे इन शैम्पू उत्पादों पर ध्यान गया। उन्होंने इसे अपने देश में ले जाकर व्यावसायिक रूप में बेचने का विचार किया। इसके बाद शैम्पू को पश्चिमी देशों में भी लोकप्रियता मिली। अंग्रेज़ों ने शैम्पू के आधुनिक रूप को विकसित किया और इसे बाज़ारों में उतारा जिससे यह पूरी दुनिया में फैल गया।
आज शैम्पू एक आम उत्पाद बन चुका है जिसे लोग हर दिन इस्तेमाल करते हैं लेकिन इसकी जड़ें भारतीय परंपराओं में गहरी हैं। प्राकृतिक अवयवों का उपयोग शैम्पू में अब भी कुछ उत्पादों में किया जाता है जो भारतीय प्रभाव को दर्शाता है।