नई दिल्ली:- भारत का संविधान न केवल एक कानूनी दस्तावेज है, बल्कि यह देश की एकता, समानता और बंधुत्व का आधार है। इसे तैयार करने में संविधान सभा ने लंबी बहसों, गहन विचार-विमर्श और समर्पित प्रयास किए। हालांकि संविधान निर्माण का श्रेय मुख्य रूप से डॉ. बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर को दिया जाता है।
संविधान निर्माण की प्रक्रिया
डॉ. आंबेडकर संविधान सभा की मसौदा समिति (Drafting Committee) के अध्यक्ष थे। इस समिति में उनके अलावा छह और सदस्य थे। बावजूद इसके संविधान का अधिकतर लेखन कार्य उन्होंने ही किया। इसकी मुख्य वजह यह थी कि डॉ. आंबेडकर में कानूनी विशेषज्ञता, सामाजिक न्याय की गहरी समझ और समाज के हर वर्ग की समस्याओं को समझने की क्षमता थी।
टी.टी. कृष्णामाचारी का भाषण
संविधान निर्माण के दौरान समिति के सदस्य टी.टी. कृष्णामाचारी ने 5 नवंबर 1948 को संविधान सभा में कहा था,
मसौदा समिति के सात सदस्यों में से केवल डॉ. आंबेडकर ही पूरे समय कार्यरत रहे। अन्य सदस्य या तो विदेश चले गए या उन्होंने समिति की बैठकों में भाग नहीं लिया। संविधान का यह रूप डॉ. आंबेडकर की मेहनत और दृढ़ता का परिणाम है।
आंबेडकर को शिल्पी क्यों कहा गया?
डॉ. आंबेडकर ने संविधान निर्माण में न केवल कानूनी विशेषज्ञता का उपयोग किया बल्कि उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि समाज के हर वर्ग, विशेषकर दलितों, महिलाओं और हाशिये पर खड़े समुदायों को बराबरी का अधिकार मिले। उन्होंने समानता, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय को संविधान के मूल सिद्धांतों के रूप में स्थापित किया।
संविधान निर्माण में कई चुनौतियां थीं। विभिन्न धर्म, जाति और क्षेत्रों के बीच सामंजस्य स्थापित करना कठिन था। इसके अलावा डॉ. आंबेडकर को व्यक्तिगत रूप से भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। कुछ लोग उनके विचारों को कट्टरपंथी मानते थे। बावजूद इसके, उन्होंने इन सभी बाधाओं को पार करते हुए एक ऐसा संविधान तैयार किया जिसने भारत को एक प्रगतिशील और समावेशी राष्ट्र का आधार दिया।
भारत का संविधान आज भी देश की लोकतांत्रिक संरचना को बनाए रखने और सामाजिक-आर्थिक समानता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह प्रत्येक नागरिक को उसके अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान कराता है।
डॉ. आंबेडकर को संविधान का शिल्पी कहना उचित है। उनकी दूरदर्शिता और अथक परिश्रम ने भारत को एक ऐसा संविधान दिया जो न केवल अपने समय में बल्कि आज भी प्रासंगिक है। संविधान दिवस पर हमें उनके योगदान को याद करते हुए उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।संविधान के निर्माण के पीछे का यह संघर्ष भारत के गौरव और एकता की कहानी है।