जयपुर (राजधानी):- राजस्थान में हुए उपचुनावों में दौसा विधानसभा सीट पर खासा दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला। यहां बीजेपी उम्मीदवार जगमोहन मीणा की हार और कांग्रेस के दीनदयाल बैरवा की जीत ने चुनावी समीकरणों को नया मोड़ दिया है। यह उपचुनाव न केवल बीजेपी और कांग्रेस के बीच था बल्कि इसने किरोड़ी लाल मीणा की राजनीति पर भी सवाल उठाए हैं जिनकी कोशिशें अपने भाई जगमोहन मीणा को जीत दिलाने के लिए पूरी थीं।
दौसा सीट पर चुनाव प्रचार के दौरान किरोड़ी लाल मीणा ने अपने भाई की जीत के लिए हर संभव प्रयास किए, यहां तक कि उन्होंने वोट के लिए ‘भिक्षाम देहि’ जैसा विवादास्पद अभियान भी चलाया। बावजूद इसके किरोड़ी लाल मीणा का जादू नहीं चला और जगमोहन मीणा को हार का सामना करना पड़ा। दीनदयाल बैरवा ने 2,109 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। बैरवा को 75,000 से ज्यादा और जगमोहन मीणा को 73,000 से ज्यादा वोट मिले।
यह परिणाम केवल एक चुनावी नतीजा नहीं है बल्कि किरोड़ी लाल मीणा की राजनीतिक दिशा का भी निर्धारण करेगा। पूर्वी राजस्थान के कई इलाकों में जहां किरोड़ी लाल मीणा ने चुनावी प्रचार का जिम्मा लिया था बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा देने का ऐलान किया था लेकिन मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया। दौसा में यह हार उनके राजनीतिक प्रभाव को चोट पहुंचा सकती है।
दौसा विधानसभा सीट पर कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री सचिन पायलट की साख भी दांव पर थी। उपचुनाव के दौरान पायलट और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ के बीच कई बार बयानबाजी हुई जिससे यह कयास लगाए जा रहे थे कि चुनाव परिणाम पायलट की राजनीतिक छवि पर असर डालेगा। हालांकि इस बार कांग्रेस ने मुकाबला जीतने में सफलता पाई।गुर्जर-मीणा वोट बैंक की राजनीति के लिए दौसा की यह सीट अहम मानी जाती है और इस उपचुनाव ने सचिन पायलट के लिए भी बड़े संकेत दिए हैं कि उनकी सियासी छवि और रणनीतियां किस दिशा में आगे बढ़ सकती हैं।