नई दिल्ली:- सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में प्रतिकूल कब्जे के सिद्धांत को मान्यता देते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति ने किसी संपत्ति पर 12 साल तक लगातार कब्जा रखा है और इस दौरान संपत्ति के मूल मालिक ने उसे कानूनी रूप से बेदखल करने का प्रयास नहीं किया तो वह व्यक्ति उस संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकता है।
क्या है प्रतिकूल कब्जे का सिद्धांत?
इस सिद्धांत के तहत, यदि कोई व्यक्ति संपत्ति का मालिक नहीं है लेकिन लगातार 12 साल तक उसका कब्जा बनाए रखता है और इस दौरान मूल मालिक ने उस व्यक्ति को हटाने के लिए कोई कानूनी कदम नहीं उठाया तो कब्जाधारी को संपत्ति पर कानूनी अधिकार प्राप्त हो सकता है। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर और जस्टिस एम.आर. शाह की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि इस सिद्धांत के तहत कब्जाधारी को भी अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए कानूनी मुकदमा दायर करने का अधिकार है।
पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि कोई भी कब्जाधारी व्यक्ति को कानून की उचित प्रक्रिया के बिना बेदखल नहीं कर सकता। 12 साल की अवधि समाप्त होने के बाद मूल मालिक का भी संपत्ति पर अधिकार खत्म हो जाता है। फैसले में कहा गया प्रतिकूल कब्जे की अवधि पूरी होने के बाद मालिक का संपत्ति से संबंधित अधिकार समाप्त हो जाता है और कब्जाधारी व्यक्ति उस संपत्ति का वैधानिक मालिक बन जाता है।
फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया कि यह सिद्धांत सार्वजनिक उपयोग के लिए आरक्षित भूमि पर लागू नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक उपयोगिता की भूमि पर कब्जा करके इसे वैध अधिकार में बदलने की अनुमति नहीं दी जा सकती। खंडपीठ ने कहा पब्लिक उपयोग के लिए समर्पित भूमि पर प्रतिकूल कब्जे से कोई अधिकार अर्जित नहीं किया जा सकता। यह सुनिश्चित किया