आगरा: सिक्कों पर अंकित की जाती थीं। यह परंपरा गुप्तकाल से लेकर राजपूतकाल तक देखी गई। गुप्तकाल (चौथी से छठी शताब्दी) में राजा समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के सिक्कों पर देवी लक्ष्मी और देवी दुर्गा की छवियां देखी गईं। चंद्रगुप्त द्वितीय के सिक्कों पर देवी लक्ष्मी की पद्मासन मुद्रा और स्कंदगुप्त के समय धनलक्ष्मी का अंकन होता था। इससे यह पता चलता है कि प्राचीन भारतीय समाज में देवी लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी के रूप में सम्मानित किया जाता था। हालांकि इतिहासकारों के बीच यह विषय विवाद का भी कारण बना हुआ है कि ये चित्रण देवी लक्ष्मी के ही थे या किसी अन्य देवी के।
मुगल सम्राट अकबर ने अपने शासनकाल के दौरान सिक्कों पर देवी-देवताओं के चित्रण पर रोक लगा दी और इसके स्थान पर इस्लामिक कलमा का अंकन शुरू किया। यह बदलाव धार्मिक सहिष्णुता और सत्ता की एक नई नीति का प्रतीक था जो विभिन्न धर्मों के प्रति अकबर की तटस्थता को दिखाता है। इतिहासकार रांगेय राघव की रांगेय राघव ग्रंथावली भाग-10 में भी इस तथ्य का उल्लेख है कि अकबर ने न केवल देवी लक्ष्मी का चित्रण हटवाया बल्कि भारत के नक्शे का अंकन भी सिक्कों से हटवा दिया।
12वीं शताब्दी में गोविंदचंद्र गहड़वाल और कल्याणी के कल्चुरी वंश के शासकों ने भी देवी लक्ष्मी के चित्रण वाले सिक्के जारी किए। उस समय लक्ष्मी जी का चित्रण एक मान्यता के रूप में प्रचलित था जो राजपूतों के सिक्कों पर भी दिखाई देता है। इस तरह लंबे समय तक सिक्कों पर लक्ष्मी जी और दूसरी ओर शासकों के नाम का अंकन होता रहा।
आज भले ही सरकारी सिक्कों और नोटों पर देवी-देवताओं का अंकन नहीं होता लेकिन दीपावली के मौके पर लक्ष्मी-गणेश के चांदी के सिक्कों की मांग बरकरार है। लोग इन्हें पूजन और उपहार के रूप में खरीदते हैं ताकि समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक अपने घर में ला सकें।