नई दिल्ली :- रतन टाटा ने दुनिया को अलविदा कह दिया है लेकिन उनकी विरासत आने वाले कई दशकों तक जीवित रहेगी। जिस तरह की शख्सियत रतन टाटा थे उस तरह के व्यक्तित्व की कल्पना करना भी मुश्किल है। बेहद सादा जीवन जीने में यकीन करने वाले रतन टाटा ने समाज की जो सेवा की उसके लिए हर कोई हमेशा उनका ऋणी रहेगा।
रतन टाटा ने के व्यक्तिगत जीवन के बारे में लोग बहुत कम जानते हैं। शायद ही किसी को पता हो कि रतन टाटा ने अपने करियर की शुरुआत एक कर्मचारी के तौर पर की थी। यही नहीं उनकी पहली नौकरी टाटा ग्रुप नहीं बल्कि आईबीएम थी।
अमेरिका में ही बसना चाहते थे
जी हां जब रतन टाटा पढ़ाई करने के लिए अमेरिका गए थे तो वहां रहते हुए उन्होंने आर्किटेक्ट एंड स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल की। इसके बाद रतन टाटा अमेरिका में ही बस जाना चाहते थे।
घर वापसी की वजह
लेकिन इसी दौरान उनकी दादा लेडी नवजबाई की तबीयत खराब हो गई। जिसकी वजह से रतन टाटा ने वापस भारत लौटने का फैसला लिया। भारत लौटने के बाद रतन टाटा ने जो पहली नौकरी की वह टाटा ग्रुप में नहीं बल्कि आईबीएम में की थी। हालांकि इसकी जानकारी परिवार में किसी को नहीं थी कि रतन टाटा आईबीएम में नौकरी कर रहे हैं।
आईबीएम में पहली नौकरी
लेकिन जब टाटा ग्रुप के चेयरमैन जेआरडी टाटा को इस बात की जानकारी मिली तो वह काफी नाराज हुए और उन्होंने रतन टाटा को फोन करके स्पष्ट तौर पर कहा था कि आखिर भारत में रहकर तुम कैसे आईबीएम की नौकरी कर सकते हो। जेआरडी टाटा ने रतन टाटा से उनका बायोडाटा शेयर करने के लिए कहा था।
खुद टाइप कर बनाया रिज्यूम
रिपोर्ट की मानें तो उस वक्त रतन टाटा के पास अपना बायोडाटा नहीं था जिसकी वजह से उन्होंने आईबीएम के ऑफिस में ही इलेक्ट्रिक टाइपराइटर्स की मदद से खुद टाइप करके अपना बायोडाटा तैयार किया। उन्होंने इसके बाद अपना बायोडाटा शेयर किया और 1962 में उन्हें टाटा इंडस्ट्रीज में नौकरी मिल गई थी।
21 साल संभाला टाटा की कमान
टाटा ग्रुप ज्वाइन करने के बाद रतन टाटा ने धीरे-धीरे कई जिम्मेदारियां संभाली और आखिरकार ग्रुप के शीर्ष पर पहुंचे। उन्होंने तकरीबन 21 वर्ष तक टाटा ग्रुप की कमान संभाली। इस दौरान उन्होंने टाटा ग्रुप को नई बुलंदियों पर पहुंचाया। इस दौरान जगुआर लैंड रोव और कोरस का अधिग्रहण किया गया। साथ ही टाटा ग्रुप को 100 देशों में बढ़ाया गया।