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आखिर क्यों आईआरसीटीसी जैसी सरकारी संस्थाएं होती हैं ट्रोल्स के निशाने पर

नई दिल्ली :- सोशल मीडिया पर खड़ा हुआ हंगामा कभी-कभी कितना बड़ा रूप ले लेता है, इसके उदाहरण हम आए दिन देखते रहते हैं। सोशल मीडिया ने एक तरफ लोगों को गलत के खिलाफ आवाज़ उठाने की ताकत दी है तो दूसरी तरफ कई बार तथ्यों को गलत ढंग से प्रस्तुत करने की आज़ादी भी दे दी है। गलत-सही के बीच की लड़ाई में कई बार गलत के रौद्र रूप के सामने सही भी बौना नज़र आने लगता है।

हाल ही में 26 मार्च, 2024 को एक ट्वीट करके एक सैन्य अधिकारी ने यह आरोप लगाकर विवाद खड़ा कर दिया कि आईआरसीटीसी (IRCTC) कर्मचारियों द्वारा उन्हें रिश्वत की पेशकश की गई, उन्होंने अपनी पोस्ट में लोगों से वीडियो को वायरल करने को कहा और कुछ ही घंटों में वीडियो वायरल हो गया। लेकिन दो घंटे के अंदर ही उक्त अधिकारी ने एक अन्य वीडियो जारी करते हुए पूरी घटना को एक गलतफहमी बाताया और कहा कि सब कुछ ठीक है। लेकिन तीर कमान से निकल चुका था था। सरकार विरोधी सोशल मीडिया हैंडल्स ने स्पष्टीकरण के वीडियो को नज़रअंदाज़ करते हुए आरोप वाले वीडियो को शेयर करना जारी रखा। यह स्थिति संदर्भ के महत्व और गलत सूचना को हथियार बनाए जाने की संभावना को रेखांकित करती है।

आरोप लगाने वाले अधिकारी ने साफ किया कि ट्रेन की समय में देरी की वजह से यह भ्रम पैदा हुआ, जिसके कारण नाश्ता तय समय से पहले परोसा गया और स्टेशन पर दोपहर का भोजन उस समय परोसा गया, जब नाश्ते की योजना बनाई गई थी। दोपहर के भोजन के मेनू को स्वयं अधिकारी ने अंतिम रूप दिया गया था, फिर भी बदलाव की वजह से गलतफहमी पैदा हुई जो बाद में निराधार आरोप में बदल गई।

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