नई दिल्ली :- पंजाब और हरियाणा, दो राज्यों के बीच बॉर्डर पर किसान पिछले चार साल से अपनी मांगों को लेकर डटे हुए हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग 44 के पास स्थित यहां का स्थानीय गांव शंभू काफी चर्चित है। यह गांव पहली बार 2020 में तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध के दौरान सुर्खियों में आया था, जब पंजाब के किसानों ने दिल्ली की ओर बढ़ते हुए शंभू बॉर्डर पर बैरिकेड्स तोड़ दिए थे और हरियाणा से दिल्ली कूच कर गए थे, हालांकि इस साल की शुरुआत में जब आंदोलन को लेकर किसान दिल्ली कूच कर रहे थे, तो वे बॉर्डर क्रॉस नहीं कर पाए थे।
यह गांव अब फिर से सुर्खियों में है, क्योंकि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हाल ही में हरियाणा को निर्देश दिया है कि वह प्रदर्शनकारी किसानों को दिल्ली की ओर मार्च करने से रोकने के लिए लगाए गए बैरिकेड्स हटा दे। पंजाब और हरियाणा में शंभू बॉर्डर का उल्लेख अकसर राजनेताओं द्वारा अपने विरोधियों को निशाने पर लेने के लिए किया जाता रहा है।
शंभू बॉर्डर का खूब हुआ है जिक्र
साल 2007 से 2017 तक जब पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल थे, तब बादल अक्सर राज्य की विभिन्न मांगों को लेकर प्रधानमंत्री से मिलते थे। इन यात्राओं की आलोचना तब हुई जब बादल के राजनीतिक विरोधियों ने उनकी आलोचना करते हुए कहा कि बादल प्रधानमंत्री से मिलते हैं, उन्हें गुलदस्ता भेंट करते हैं, अपनी मांगें रखते हैं… जैसे ही वह शंभू सीमा पार करके पंजाब में प्रवेश करते हैं, उनकी भाषा बदल जाती है और वह केंद्र की आलोचना करना शुरू कर देते हैं। जब भी विरोधी सरकार से बादल परिवार के सदस्यों की मुलाकात होती थी, तो वह सभी यही बात दोहराते थे।
शंभू गांव के बात करें तो यह पंजाब के पटियाला जिले की राजपुरा तहसील में आता है। इसमें एक बड़ी बस्ती शंभू कलां और एक छोटी बस्ती शंभू खुर्द है। 16वीं शताब्दी में मुगल सम्राट शेर शाह सूरी द्वारा बनवाए गए शंभू सराय के कारण इस गांव का ऐतिहासिक महत्व है।
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