मुम्बई :- पंचायत 3 ओटीटी पर आखिरकार दस्तक दे चुका है। पिछले दोनों सीजनों की तरह यह सीजन भी आपको हंसाता है और चुपके से वो बात भी कर जाता है,जिन पर सोचना जरुरी है। जिससे सीरीज इस बार भी मनोरंजक और दिलचस्प बन गयी है लेकिन कहानी और स्क्रीनप्ले में वह धार थोड़ी कमजोर नजर आयी है। जो पंचायत सीरीज की खासियत है।
सादगी और साफ़गोई से कहानी कहना पंचायत की पहचान रही है लेकिन इस बार आख़िर के दो एपिसोड्स में मामला गोलीबारी तक पहुंच गया है। सिर्फ यही नहीं जमीनी स्तर के छोटे – मोटे मुद्दों को इस बार स्क्रीनप्ले में कम तरजीह मिली है, मामला सियासी ज्यादा हो गया है।
आठ एपिसोड की इस सीजन की कहानी की शुरुआत वहीं से होती हैं,जहां से दूसरा सीजन ख़त्म हुआ है। प्रह्लाद (फैजल) अपने शहीद बेटे की मौत के सदमे में अभी भी जूझ रहा है। उनका दर्द विकास,मंजू देवी और प्रधान जी को परेशान कर रहा है। सचिव जी ( जितेंद्र) भी परेशान हैं क्योंकि उनका तबादला हो गया है। नए सचिव की फुलेरा में एंट्री हो गयी है। वह विधायक( पंकज झा )का ख़ास है .इधर नये सचिव की जॉइनिंग प्रधान जी और उनकी टीम नहीं होने दे रहे हैं क्योंकि वह विधायक की मनमानी फुलेरा में नहीं चाहते हैं और उन्हें पूर्व सचिव अभिषेक से लगाव भी है। कैसे प्रह्लाद नये सचिव की जॉइनिंग को रोकता है और तबादला हो चुके अभिषेक (जितेंद्र)की एंट्री फिर से फुलेरा में होती है ।यही आगे की आगे की कहानी है। कहानी सिर्फ़ इतनी नहीं है। बनराकक्षस उर्फ़ भूषण( दुर्गेश कुमार) की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ कुछ इस कदर बढ़ गयी है कि वह विधायक को अपने सिर पर बिठा लेता है, जिसका एकमात्र सपना प्रधान और फुलेरा गांव से बदला लेना है। विधायक क्या प्रधान से बदला ले पाएगा। वह अपने बदले को पूरा करने के लिए किस हद तक जा सकता है। प्रधान और उनकी टीम क्या विधायक को मुंह तोड़ जवाब इस बार भी दे पायेंगे। यही पूरी कहानी है।
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