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पाकिस्तान के गले में हड्डी की तरह फंसा बलूचिस्तान, बंगालियों की तरह जिन्ना के देश से बलूचों को भी क्यों नफरत है?

बलूचिस्तान:- बलूच लिबरेशन आर्मी ने दावा किया है, कि ग्वादर बंदरगाह के पास उसके हमले में कम से कम 25 पाकिस्तानी जवानों की मौत हो गई है, जबकि पाकिस्तान की सेना का दावा है, कि उसने बलूचों के हमले को फेल कर दिया है और बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) के आठ आतंकियों को मार गिराया है।

पाकिस्तानी सेना या बीएलए, किसका दावा सही है, इसकी पुष्टि तो हम नहीं कर सकते हैं, लेकिन पाकिस्तान के लिए बलूचिस्तान प्रांत एक स्थाई सिरदर्द बन गया है और स्थिति का आकलन करने से यही पता चलता है, कि बलूचिस्तान अब पाकिस्तान के गले में हड्डी की तरह फंस गया है।

बलूचिस्तान को समझिए

बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा, खनीज संपदाओं से भरा सबसे गरीब प्रांत है, जिसकी आबादी पाकिस्तान के बाकी प्रांतो में सबसे कम है। लेकिन, प्रचूर प्राकृतिक संसाधनों के बावजूद बलूचिस्तान का शोषण सबसे ज्यादा किया जाता है और फायदा पाकिस्तानी पंबाज के शक्तिशाली जनरलों और नेताओं को मिलता है।

लिहाजा, 1948 से ही बलूचिस्तान हिंसा और खूनी आंदोलनों का सबसे बड़ा केन्द्र बन गया, जहां पाकिस्तानी सेना ने हजारों लोगों को मौत के घाट उतारा है।

बलूचिस्तान 1947 से पहले तक एक आजाद मुल्क था लेकिन 1947 में पाकिस्तान ने पूरे बलूचिस्तान पर कब्जा जमा लिया था और बलूचिस्तान के लोग लगातार आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

पाकिस्तान की सेना ने बलूचिस्तान पर जुल्म और सितम की हर हद को पार कर दिया और हजारों बलूच नेताओं को मरवा दिया, उन्हें गायब करवा दिया। बलूचिस्तान की आजादी मांगने वाले सैकड़ों कार्यकर्ताओं को पाकिस्तान की सरकार और आर्मी ले बचने के लिए देश छोड़कर भागना पड़ा।

अभी भी हजारों बलूच कार्यकर्ता पाकिस्तान की जेलो में बंद हैं या फिर देश छोड़कर भागे हुए हैं।

बलूचिस्तान में प्राकृतिक गैस और खनिज का भंडार है और पाकिस्तान की सरकार इसीलिए बलूचिस्तान में लूट मचाए हुए हैं। पाकिस्तान की सरकार बलूचिस्तान से लूट मार करती है और बाकी पाकिस्तान की पेट भरती है।

बलूचिस्तान के पास जो प्राकृतिक संसंधान हैं, उससे बलूचिस्तान को कोई फायदा नहीं मिलता है। पाकिस्तान ने बलूचिस्तान का भी सौदा चीन के हाथों कर रखा है। वहीं, बलूचिस्तान होकर ही सीपीईसी यानि चायना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर गुजरता है, जो करीब 62 अरब डॉलर का है। बलूचिस्तान के अंदर पाकिस्तान को लेकर भारी नफरत है और पाकिस्तान की सेना दमन के जरिए नफरत को कुचलने की कोशिश करती है।

चीनी प्रोजेक्ट्स के खिलाफ खूनी आंदोलन

दरअसल, बलूचिस्तान चीन के सीपीईसी प्रोजेक्ट का बेहद अहम हिस्सा है और इस प्रोजेक्ट पर चीन ने करीब 62 अरब डॉलर का दांव खेला है और ग्वादर में ही चीन नौसेना का अड्डा बनाने की भी तैयारी कर रहा है, ताकि भारत पर प्रेशर बनाने के साथ साथ चीनी नौसेना फारस की खाड़ी में भी अपनी पकड़ को मजबूत कर सके।

लेकिन, बलूचिस्तान में आजादी समर्थक क्रांतिकारियों ने पाकिस्तान सरकार के साथ साथ चीनियों के खिलाफ भी बिगूल फूंक रखा है और बलूचों पर जुल्म करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों को करारा जवाब दिया जा रहा है।

बलूचिस्तान पर अवैध कब्जा करने वाले पाकिस्तान को अब डर लग रहा है कि अगर बलूचों ने आजादी की आवाज को और भी जरा सी हवा दी गई, तो फिर चीन के निशाने पर सीधा पाकिस्तान ही होगा।

पाकिस्तान के कई पत्रकार कह चुके हैं, कि पाकिस्तानी सेना ने बलूचों के साथ वही अत्याचार किए हैं, जो पूर्वी पाकिस्तान में किए गये थे और नतीजा बांग्लादेश का निर्माण था। और बलूचों के साथ जो अत्याचार किए जा रहे हैं, उसके नतीजे में पाकिस्तान का एक और विभाजन हो सकता है।

बलूच और सिंधी उग्रवादी समूह पहले भी पाकिस्तान में चीनी संपत्तियों को निशाना बना चुके हैं। लेकिन अब जब ये सभी समूह एक गठबंधन बन गये हैं, तो आशंका है, कि अब बलूचिस्तान में चीनियों के खिलाफ भीषण हमलों का सिलसिला शुरू होगा।

कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि अब बलूच विद्रोहियों ने पाकिस्तान तहरीक-ए-तालिबान के साथ हाथ मिला लिया है या हाथ मिलाने वाले हैं और इसमें आईएसआईएस-के भी शामिल होगा। लिहाजा अब ये संगठन काफी ज्यादा खतरनाक हो जाएगा और पाकिस्तान के लिए इन्हें संभालना इसलिए अत्यंत मुश्किल होगा। क्योंकि इन्हें जमीन पर काफी ज्यादा आम लोगों का समर्थन हासिल है। लिहाजा अब देखना दिलचस्प होगा कि पाकिस्तान जलते बलूचिस्तान की आग को कैसे बुझा पाता है?

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