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वीर योद्धा डूंगर सिंह भाटी का इतिहास 

विवेक मिश्रा की स्पेशल रिपोर्ट 

   सोनभद्र (उत्तर प्रदेश):-   राजपूताना वीरों की भूमि है। यहाँ ऐसा कोई गांव नही जिस पर राजपूती खून न बहा हो, जहाँ किसी जुंझार का देवालय न हो और जहां कोई युद्ध न हुआ हो। भारत में मुस्लिम आक्रमणकर्ताओ कोे रोकने के लिए लाखों राजपूत योद्धाओं ने अपना खून बहाया  बहुत से वीर वीरगाथाएं इतिहास के पन्नों में दब गयी। इसी सन्दर्भ में एक सच्ची घटना का वर्णन करता हूं जो इस प्रकार है।

उस वक्त जैसलमेर और बहावलपुर (वर्तमान पाकिस्तान में) दो पड़ोसी राज्य थे। बहावलपुर के नवाब की सेना आये दिन जैसलमेर राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रो में डकैती, लूट करती थी परन्तु कभी भी जैसलमेर के भाटी वंश के शासको से टकराने की हिम्मत नही करती थी।

उन्हीं दिनों एक बार जेठ की दोपहरी में दो राजपूत वीर डूंगर सिंह जी उर्फ़ पन्न राज जी, जो की जैसलमेर महारावल के छोटे भाई के पुत्र थे और उनके भतीजे चाहड़ सिंह जिसकी शादी कुछ दिन पूर्व ही हुयी थी, दोनों वीर जैसलमेर बहावलपुर की सीमा से कुछ दुरी पर तालाब में स्नान कर रहे थे। तभी अचानक बहुत जोर से शोर सुनाई दिया और कन्याओं के चिल्लाने की आवाजे आई। उन्होंने देखा की दूर बहावलपुर के नवाब की सेना की एक टुकड़ी जैसलमेर रियासत के ही ब्राह्मणों के गाँव “काठाडी” से लूटपाट कर अपने ऊँटो पर लूटा हुआ सामान और साथ में गाय, ब्राह्मणों की औरतो को अपहरण कर जबरदस्ती ले जा रही है।

तभी डूंगर सिंह उर्फ़ पनराजजी ने भतीजे चाहड़ सिंह को कहा की तुम जैसलमेर जाओ और वहा महारावल से सेना ले आओ तब तक में इन्हें यहाँ रोकता हूँ। लेकिन चाहड़ समझ गए थे की काका जी कुछ दिन पूर्व विवाह होने के कारण उन्हें भेज रहे हैँ। काफी समझाने पर भी चाहड़ नही माने और अंत में दोनों वीर क्षत्रिय धर्म के अनुरूप धर्म निभाने ‘गौ – ब्राह्मण’ को बचाने हेतु मुस्लिम सेना की ओर अपने घोड़ो पर तलवार लिए दौड़ पड़े। डूंगर सिंह को एक बड़े सिद्ध पुरुष ने सुरक्षित रेगिस्तान पार कराने और अच्छे सत्कार के बदले में एक चमत्कारिक हार दिया था जिसे वो हर समय गले में पहनते थे।

दोनों वीर मुस्लिम टुकड़ी पर टूट पड़े और देखते ही देखते बहावलपुर सेना की टुकड़ी के लाशो के ढेर गिरने लगे। कुछ समय बाद वीर चाहड़ सिंह (भतीजे)भी वीर गति को प्राप्त हो गए जिसे देख क्रोधित डूंगर सिंह जी ने दुगुने जोश में युद्ध लड़ना शुरू कर दिया। तभी अचानक एक मुस्लिम सैनिक ने पीछे से वार किया और इसी वार के साथ उनका शीश उनके धड़ से अलग हो गया।

किवदंती के अनुसार, शीश गिरते वक़्त अपने वफादार घोड़े से बोला- “बाजू मेरा और आँखें तेरी” डूंगर सिंह भाटी युद्ध में झुंझार रूप में घोड़े ने अपनी स्वामी भक्ति दिखाई व धड़, शीश कटने के बाद भी लड़ता रहा जिससे मुस्लिम सैनिक भयभीत होकर भाग खड़े हुए और डूंगर जी का धड़ घोड़े पर पाकिस्तान के बहावलपुर के पास पहुंच गया।

तब लोग बहावलपुर नवाब के पास पहुंचे और कहा की एक बिना मुंड आदमी बहावलपुर की तरफ उनकी टुकड़ी को खत्म कर गांव के गांव तबाह कर जैसलमेर से आ रहा है। वो सिद्ध पुरुष भी उसी वक़्त वही थे जिन्होंने डूंगर सिंह जी को वो हार दिया था। वह समझ गए थे कि वह कोई और नहीं डूंगर सिंह ही हैं। उनके आदेश पर कन्याओं ने नील लेकर पोल(दरवाजे के ऊपर) पर खड़ी कर दी और जैसे ही डूंगर सिंह नीचे से निकले उन कन्याओं के नील डालते ही धड़ शांत हो गया।

“ना मृत्यू का भय वीरों ना जीवन से प्रित…

शिश कटे पर धड़ लड़ें यही राजपूती रित”

बहावलपुर, जो कि पाकिस्तान में है जहाँ डूंगर सिंह भाटी जी का धड़ गिरा, वहाँ इस योद्धा को ‘मुण्डापीर’ कहा जाता है। इस राजपूत वीर की समाधी/मजार पर उनकी याद में हर साल मेला लगता है और मुसलमानो द्वारा चादर चढ़ाई जाती है। वहीँ दूसरी ओर भारत के जैसलमेर का मोकला गाँव है, जहाँ उनका सिर कट कर गिरा उसे ‘डूंगरपीर’ कहा जाता है। वहाँ एक मंदिर बनाया हुआ है और हर रोज पूजा अर्चना की जाती है। डूंगर पीर की मान्यता दूर दूर तक है और दूर दराज से लोग मन्नत मांगने आते हैँ।

लेखक :

पंडित प्रसाद दीक्षित,ज्योतिषाचार्य एवं सदस्य न्यास परिषद श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी।

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