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बीएचयू द्वारा शोध संगोष्ठी के अंतर्गत केंद्र के राहुल सभागार में ‘शोध प्रविधि, चुनौतियां को लेकर कार्यक्रम किया गया

बनारस (उत्तर प्रदेश):- बनारस स्थित भोजपुरी अध्ययन केंद्र, बीएचयू द्वारा शोध संगोष्ठी के अंतर्गत केंद्र के राहुल सभागार में ‘शोध प्रविधि’ चुनौतियां और संभावनाएं’ विषय एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया कार्यक्रम की जिसकी अध्यक्षता विज्ञान संस्थान, बीएचयू के निदेशक प्रो अनिल कुमार त्रिपाठी ने की।इस अवसर पर बोलते हुए प्रो त्रिपाठी ने कहा कि शोध को स्व प्रमाणित होना चाहिए।वह खुद के अनुभवों पर आधारित होना चाहिए।उन्होंने कहा कि कोई भी सत्य पूर्ण नहीं होता।शोध असल में अपने अनुभवों की सीमाओं में ही संभव है।उन्होंने डीएनए की खोज को बीसवीं सदी की बड़ी उपलब्धि माना।शोध को पूर्वाग्रह मुक्त होना चाहिए।उसमें नयापन होना चाहिए।संगोष्ठी में अपना विचार रखते हुते जीव विज्ञान विभाग,बीएचयू के प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा कि शोध की मौलिकता के लिए सूक्ष्म निरीक्षण की बहुत जरूरत होतीहै।अच्छा शोध असल में वास्तविक देश सेवा है।भूगोल विभाग,बीएचयू के प्रो. सरफराज आलम ने कहा कि जनपदीय अध्ययन में शोध के लिए विज्ञान की तकनीकि के साथ समाज के भाव व विचार को भी समझना जरूरी होगा।इसके लिए प्रश्नाकुलता व निरीक्षण का होना बहुत जरूरी है।इतिहास विभाग ,बीएचयू के शिक्षक डॉ. आशुतोष कुमार ने शोध प्रविधि पर बोलते हुए सामग्री संकलन को बहुत महत्वपूर्ण माना जिंसमें नोट्स,पेपर कटिंग,फुट नोट व टिप्पणियों को उपयोगी माना।आज के समय में उन्होंने डिजिटल ह्यूमैनिटी को शोध में नवाचार के लिए बहुमूल्य माना।भूगोल विभाग ,बीएचयू में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शुभ्रा शर्मा ने केदारनाथ की घाटी में भूस्खलन पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि हिमालय में बढ़ते हुये तोड़ फोड़ के कारण वहां की भौगोलिकता में लगातार परिवर्तन हो रहा है।उन्होंने हिमांचल की भू आकृतियों पर काम करने के लिए लोगों को प्रेरित किया।कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य देते हुए केंद्र समन्वयक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि शोध को गुणात्मक बनाने हेतु इसे सामाजिक बनाने की जरूरत है।शोध न तो कोई तैयार माल है और न ही कोई वस्तुनिष्ठ पदार्थ।इसमें शोधार्थी का आत्म शामिल होता है जो उसके कार्य को मौलिक बनाता है।प्रो शुक्ल ने आगे कहा कि वैश्वीकरण के मनोविज्ञान को समझते हुये शोधार्थी को कट व पेस्ट से बचते हुए अपने विषय में एक सर्जक की तरह प्रवेश करना चाहिए।कार्यक्रम का संचालन डॉ शिल्पा सिंह ने किया।धन्यवाद ज्ञापन जूही त्रिपाठी ने किया।इस अवसर पर डॉ विन्धयाचल यादव,डॉ प्रभात मिश्र,डॉ रवि सोनकर,डॉ अशोक ज्योति,डॉ महेंद्र कुशवाहा,डॉ विवेक मिश्र,डॉ सत्यप्रकाश पाल के साथ केन्द्र व विभाग के कई शोधार्थी भी मौजूद रहे।

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