नई दिल्ली :- देश की राजनैतिक स्वतंत्रता के पश्चात कथित सेक्युलर वाद के नाम पर हिन्दू समाज पर बढ़ते अन्याय तथा ईसाईयों व मुसलमानों के तुष्टिकरण के बीच 1957 में आई नियोगी कमीशन रिपोर्ट आई। इस में ईसाई मिशनरियों द्वारा छल, कपट, लोभ, लालच व धोखे से पूरे देश में हिंदुओं के धर्मांतरण की सच्चाई सामने आने के बावजूद, तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा धर्मांतरण के विरुद्ध केंद्रीय कानून बनाने से स्पष्ट मना कर दिया गया। उधर विदेशों में रहने वाला हिन्दू समाज भी अपनी विविध समस्याओं के समाधान हेतु भारत की ओर ताक तो रहा था किन्तु, उसके प्रति भी केंद्र सरकार के उदासीन रवैए ने निराश ही किया। ऐसे में हिन्दू समाज को संगठित कर धर्म रक्षा करने तथा हिन्दू धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन मूल्यों की रक्षा हेतु, साठ वर्ष पूर्व, जन्माष्टमी (अंग्रेजी दिनांक अनुसार 29 अगस्त 1964) को विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक और हिदुस्तान समाचार के संस्थापक श्री दादासाहेब आप्टे जी के साथ, श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर, पवई, मुम्बई स्थित पूज्य स्वामी चिनमयानन्द जी के आश्रम सांदीपनि साधनालय में पूज्य स्वामी चिनमयानन्द, राष्ट्रसंत तुकडो जी महाराज, सिख सम्प्रदाय से माननीय मास्टर तारा सिंह, जैन सम्प्रदाय से पूज्य सुशील मुनि, गीता प्रेस गोरखपुर से हनुमान प्रसाद पोद्दार, के एम मुंशी तथा पूज्य श्री गुरुजी सहित 40-45 अन्य महानुभाव भी उपस्थित थे।