मुंबई (महाराष्ट्र):- भारतीय रिज़र्व बैंक ने हाल ही में अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक में ब्याज दरों में कोई कटौती न करने का फैसला लिया है। यह निर्णय विशेष रूप से उन अर्थशास्त्रियों और निवेशकों के लिए चौंकाने वाला था जो भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास को गति देने के लिए ब्याज दरों में कमी की उम्मीद कर रहे थे। हालांकि आरबीआई का यह कदम पूरी तरह से सोच-समझकर लिया गया निर्णय था जिसमें तीन प्रमुख कारण जिम्मेदार थे।
1. महंगाई पर कड़ी निगरानी
आरबीआई का प्रमुख उद्देश्य भारत में महंगाई को नियंत्रित करना है और वर्तमान में महंगाई दर उच्च स्तर पर बनी हुई है। देश में खुदरा महंगाई दर (CPI) 4-6% के बीच बनाए रखने का लक्ष्य रखने वाले आरबीआई के लिए महंगाई एक प्रमुख चिंता का विषय है। हाल ही में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, खासकर प्याज, टमाटर और अन्य आवश्यक सामानों की कीमतों में उछाल ने महंगाई को और बढ़ा दिया है। अगर आरबीआई ब्याज दरों में कटौती करता तो यह मांग को और बढ़ा सकता था जिससे महंगाई पर काबू पाना और मुश्किल हो जाता। इसलिए आरबीआई ने ब्याज दरों में कटौती से बचने का निर्णय लिया।
2. रुपये की कमजोरी
दूसरा महत्वपूर्ण कारण रुपये की कमजोरी है। भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार गिरावट का सामना कर रहा है। अगर ब्याज दरों में कटौती की जाती तो विदेशी निवेशकों के लिए भारत में निवेश करना कम आकर्षक हो सकता था जिससे रुपया और कमजोर हो सकता था। विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक ब्याज दरें महत्वपूर्ण होती हैं और दरों में कटौती से उनका विश्वास प्रभावित हो सकता था। इसलिये आरबीआई ने रुपये को स्थिर रखने के लिए ब्याज दरों में बदलाव से बचने का फैसला किया।
3. वित्तीय स्थिरता और विकास की प्राथमिकता
तीसरा कारण वित्तीय स्थिरता और दीर्घकालिक विकास की चिंता है। आरबीआई जानता है कि कम ब्याज दरों से कंपनियों और व्यक्तियों को उधारी में आसानी होती है लेकिन यह बैंकों के लिए ऋण की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। वर्तमान में बैंकों के पास पहले से ही उच्च मात्रा में ऋण का दबाव है, और अधिक ऋण देने से एनपीए की समस्या और बढ़ सकती है। इसके अतिरिक्त जब तक आर्थिक वृद्धि स्थिर नहीं हो जाती तब तक ब्याज दरों में कटौती से विकास को ज्यादा बल नहीं मिल सकता।
आरबीआई का निर्णय दर्शाता है कि वह महंगाई रुपये की स्थिरता और वित्तीय स्थिरता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को लेकर सजग है। जबकि कई अर्थशास्त्री और बाजार विशेषज्ञ उम्मीद कर रहे थे कि आरबीआई ब्याज दरों में कटौती करेगा लेकिन आरबीआई ने मौद्रिक नीति में कोई बदलाव न करने का फैसला लिया। यह निर्णय भारतीय अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक स्थिरता और विकास के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।