नई दिल्ली :- भारत सरकार ने जनगणना 2026-27 को लेकर बड़ा निर्णय लिया है, जिसमें इस बार जातिगत गणना को भी औपचारिक रूप से शामिल किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार, जनगणना की शुरुआत 1 अक्टूबर 2026 से लद्दाख और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों से की जाएगी, जबकि शेष भारत में यह कार्य 1 मार्च 2027 से शुरू किया जाएगा। इस ऐतिहासिक कदम को सामाजिक न्याय और योजनाओं की प्रभावी योजना के नजरिए से एक क्रांतिकारी पहल माना जा रहा है।
क्यों खास है यह जनगणना?
भारत की जनगणना दुनिया की सबसे बड़ी जनगणनाओं में से एक होती है, जो हर 10 वर्षों में होती है। हालांकि कोविड-19 महामारी के चलते 2021 की जनगणना टल गई थी, जिसके कारण सरकार पर आंकड़ों की नई जरूरतें और सामाजिक संरचना की अद्यतन जानकारी इकट्ठा करने का दबाव बढ़ गया था। अब जब केंद्र सरकार ने इसके नए शेड्यूल की घोषणा की है, तो यह स्पष्ट संकेत है कि सरकारी नीतियों को अधिक सटीक और समावेशी बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
जातिगत गणना: एक अहम बदलाव
अब तक भारत में जातिगत गणना केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्गों तक सीमित रही है। लेकिन इस बार सरकार ने संकेत दिया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और सामान्य वर्ग की जातियों को भी गिनती में शामिल किया जाएगा। इससे न केवल सामाजिक आंकड़ों की पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि नीतिगत योजना और आरक्षण व्यवस्था को भी अधिक संतुलित बनाने में मदद मिलेगी।
लद्दाख से शुरुआत क्यों?
सूत्रों के अनुसार, लद्दाख जैसे सीमांत और दुर्गम क्षेत्रों में मौसम की विषम स्थितियों के कारण जनगणना का काम पहले पूरा करना जरूरी है। वहां अक्टूबर से सर्दी शुरू हो जाती है, लेकिन मार्च के बाद यह काम लगभग असंभव हो जाता है। इसलिए वहां के लिए अलग से योजना बनाकर 1 अक्टूबर 2026 से सर्वे की शुरुआत की जाएगी।