नई दिल्ली:- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से एक अहम सवाल पूछते हुए देश में लैंगिक समानता और महिला अधिकारों को लेकर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि यदि महिलाएं भारतीय वायुसेना में राफेल जैसे अत्याधुनिक और युद्धक विमानों को उड़ाने में सक्षम हैं, तो फिर उन्हें सेना की जज एडवोकेट जनरल (JAG) शाखा में स्थायी कमीशन क्यों नहीं दिया जा रहा?
यह टिप्पणी तब आई जब एक याचिका के तहत सुप्रीम कोर्ट में भारतीय सेना में महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन और जेंडर न्यूट्रल अवसरों की मांग की गई। कोर्ट की बेंच ने केंद्र से पूछा कि क्या अब भी संस्थागत सोच में पुरुष वर्चस्व की मानसिकता हावी है?
क्या है JAG ब्रांच?
JAG यानी जज एडवोकेट जनरल ब्रांच भारतीय सेना की कानूनी शाखा है, जो सैन्य न्याय और अनुशासन से संबंधित मामलों को संभालती है। यहां सैन्य अधिकारियों के कोर्ट मार्शल से लेकर विधिक सलाह और सैन्य कानूनों के पालन का कार्य किया जाता है। इस ब्रांच में अब तक महिलाओं को सीमित और अस्थायी भूमिकाएं ही दी गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का महत्व
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी केवल एक सवाल नहीं, बल्कि सशस्त्र बलों में लैंगिक समानता की दिशा में एक गंभीर हस्तक्षेप है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि महिलाओं की क्षमता पर सवाल उठाना न केवल संविधान के समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है, बल्कि यह उस सोच को भी दर्शाता है जो अब समय के साथ बदलनी चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि देश की महिलाएं हर क्षेत्र में नेतृत्व कर रही हैं — अंतरिक्ष, विज्ञान, राजनीति, खेल और सेना। ऐसे में उन्हें पूर्ण अवसर देना न केवल नैतिक, बल्कि कानूनी रूप से भी अनिवार्य है।