मुंबई (महाराष्ट्र) : बॉम्बे हाईकोर्ट ने दलित पीएचडी छात्र रामदास के.एस. को राहत देने से इनकार कर दिया है जिनके टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) से दो साल के निलंबन को कथित कदाचार और “राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों” के लिए अदालत में चुनौती दी गई थी।
रामदास ने इस निलंबन को चुनौती देते हुए दावा किया था कि केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ नई दिल्ली में विरोध मार्च में शामिल होने और अयोध्या राम मंदिर के पवित्रीकरण के दौरान लोगों से राम के नाम नामक वृत्तचित्र देखने का आग्रह करने के लिए उन्हें प्रतिशोध का सामना करना पड़ा।
इसमें यह भी कहा गया कि हालांकि उनके कार्य राजनीति से प्रेरित थे और इससे यह आभास हो सकता था कि एक संस्थान के रूप में TISS विरोध के पीछे था। न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर और न्यायमूर्ति एम.एम. सथाये की पीठ ने कहा कि संस्थान को अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करने का अधिकार है और उनकी याचिका खारिज कर दी।
रामदास ने कहा कि उनकी छात्रवृत्ति भी रोक दी गई जिससे उनका जीवन दयनीय हो गया। उन्होंने निलंबन को “गैरकानूनी और अनुचित” बताया। हालांकि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) ने कहा कि उन्हें यूजीसी नियमों के तहत बर्खास्त नहीं किया गया था और उनके पास अभी भी नामित समिति के समक्ष आंतरिक रूप से अपील करने का विकल्प है।