नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ऐतिहासिक आंदोलन (दांडी मार्च) को श्रद्धांजलि देते हुए इसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक “निर्णायक अध्याय” बताया।इस दिन (12 मार्च) 1930 में महात्मा गांधी और उनके अनुयायियों ने एक प्रस्ताव पर काम शुरू किया जो आगे चलकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे शक्तिशाली प्रतीकों में से एक बन गया- दांडी मार्च। और इसके साथ ही उन्होंने ब्रिटिश नमक कर को चुनौती दी। साबरमती आश्रम से तटीय गाँव दांडी तक लगभग 240 मील की दूरी तय की जिससे पता चला कि एक साधारण सी दिखने वाली कार्रवाई भी एक साम्राज्य को खत्म कर सकती है।
प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में गांधी के साथ चलने वाले लोगों के विश्वास और बलिदान को श्रद्धांजलि दी और बताया कि कैसे वे सत्य और अहिंसा के लिए खड़े हुए जो पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।
दांडी मार्च किसी भी तरह से महज एक विरोध प्रदर्शन नहीं है। यह आत्मनिर्भरता और एकजुटता की अपील थी जिसने स्वतंत्रता के लिए एक राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत की। यह युवा और वृद्ध आम लोगों का आंदोलन था जिसने इतिहास के पाठ्यक्रम को उलटने के लिए सामूहिक प्रतिरोध की शक्ति का प्रदर्शन किया।