संभल (उत्तर प्रदेश):- उत्तर प्रदेश के संभल जिले के चंदौसी क्षेत्र में स्थित रानी की बावड़ी का इतिहास और इसका महत्व हाल ही में सामने आया है। यह बावड़ी लगभग 150 साल पुरानी है और इसे बिलारी की रानी सुरेंद्र बाला द्वारा बनवाया गया था। बावड़ी के संरक्षण और खुदाई का कार्य फिलहाल जारी है जिसमें 50 से अधिक मजदूर और कई जेसीबी मशीनें लगी हुई हैं।
खुदाई के दौरान खुलासा हुआ कि यह बावड़ी तीन मंजिला है। निचली दो मंजिलें मार्बल से बनी हैं जबकि ऊपरी मंजिल का निर्माण ईंटों से हुआ है। इस बावड़ी का उपयोग न केवल पानी के भंडारण के लिए बल्कि सैनिकों के आराम स्थल के रूप में भी किया जाता था।
इतिहास का बदलता स्वरूप:
स्थानीय लोगों और रानी सुरेंद्र बाला की पोती शिप्रा बाला ने बताया कि यह इलाका कभी हिंदू बहुल था और बावड़ी के समीप मंदिर भी हुआ करता था। हालांकि अब इस स्थान पर शाही मस्जिद बनी हुई है।
शिप्रा बाला ने दावा किया कि यह प्रॉपर्टी उनकी पैतृक संपत्ति है और उन्होंने प्रशासन से इसे पुनः प्राप्त करने की अपील की है। स्थानीय प्रशासन ने बावड़ी की ऐतिहासिकता को स्वीकार करते हुए इसे संरक्षित करने का आश्वासन दिया है।
संभल के डीएम राजेंद्र पैंसिया ने कहा कि बावड़ी का ऐतिहासिक और स्थापत्य महत्व अद्वितीय है। उन्होंने बताया कि बावड़ी की पूरी संरचना को संरक्षित करने और इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है।
सांस्कृतिक धरोहर का महत्व:
यह बावड़ी न केवल एक स्थापत्य चमत्कार है बल्कि उस समय की जल प्रबंधन और सामरिक व्यवस्था की झलक भी प्रस्तुत करती है। इससे स्थानीय इतिहास और सांस्कृतिक विरासत के पुनरुद्धार में मदद मिलेगी।
रानी की बावड़ी की यह खोज न केवल संभल की सांस्कृतिक धरोहर को नया जीवन दे रही है बल्कि क्षेत्रीय इतिहास को भी समृद्ध कर रही है। प्रशासन की कोशिशें इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनाने की दिशा में हैं।