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उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव को लेकर सियासी जंग जारी, संभावनाओं आशंकाओं की जमीन तैयार

लखनऊ (उत्तर प्रदेश):- संविधान और आरक्षण का मुद्दा अपने ढंग से प्रचारित कर भाजपा के दलित वोटबैंक में सेंध लगाने में सफल रहे सपा-कांग्रेस के रणनीतिकारों के लिए हरियाणा ने अलार्म बजाया है। 21 प्रतिशत दलित आबादी वाले इस राज्य में जिस तरह दलित मतदाताओं के बदले रुख ने कांग्रेस के हाथ से संभावित जीत छीन ली, वह आने वाले चुनावों के लिए भी संभावनाओं-आशंकाओं की जमीन तैयार कर सकता है।

बसपा लगातार कमजोर

इसकी पहली परख कुछ समय में ही उत्तर प्रदेश की दस विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में हो सकती है। इन परिणामों से संकेत मिल सकता है कि बसपा के लगातार कमजोर होने के बाद नया ठीहा तलाश रहे दलित मतदाता भाजपा की ओर यू-टर्न लेते हैं या आईएनडीआईए पर ही भरोसा बनाए रखना चाहते हैं।

बुरी तरह बिखर गया जाटव वोट

सर्वे रिपोर्ट बता रही हैं कि जाटव वोट बुरी तरह बिखर गया। 50 प्रतिशत कांग्रेस को मिला और 35 प्रतिशत भाजपा को। बाकी में बसपा, आजाद समाज पार्टी व अन्य की हिस्सेदारी हो गई। वहीं गैर जाटव अन्य दलितों में 45 प्रतिशत वोट भाजपा ले गई, जबकि कांग्रेस को करीब 30 प्रतिशत मिला। यहां दलितों के लिए कांग्रेस के साथ समान विकल्प भाजपा भी दिखाई दी।

दलित वोट बैंक ने बिगाड़ा था भाजपा का गणित

इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में दलितों का जो रुख था, उसने भाजपा के गणित को बिगाड़ दिया। न सिर्फ हरियाणा में भाजपा को कमजोर किया, बल्कि 21 प्रतिशत ही दलित आबादी वाले उत्तर प्रदेश में इसका खास असर दिखाई दिया।

सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) तो कांग्रेस द्वारा गढ़े गए संविधान व आरक्षण बचाओ के नैरेटिव ने उस दलित को भाजपा से काफी दूर कर दिया, जो 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार उसे मजबूत कर रहा था।

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