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क्‍या आपने सोचा है कि आखिर शादियों में शगुन में हमेशा 1 रुपये का स‍िक्‍का लगाकर ही क्‍यों द‍िया जाता है?

शगुन की परंपरा भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा रही है। खासकर शादी-ब्याह, त्योहारों और अन्य खास अवसरों पर शगुन देने की परंपरा निभाई जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस शगुन में हमेशा 1 रुपये का सिक्का क्यों दिया जाता है यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसके पीछे एक गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक वजह है।

1 रुपये का सिक्‍का देने की परंपरा का इतिहास

1 रुपये का सिक्का शगुन के रूप में देने की परंपरा का इतिहास कई शताब्दियों पुराना है। प्राचीन भारत में जब धन की कोई स्थिर इकाई नहीं थी तो छोटी-छोटी धातु की मुद्राएं प्रचलित थीं। जब किसी व्यक्ति को आशीर्वाद देने की बात आती थी तो उसे एक सिक्का दिया जाता था ताकि वह व्यक्ति आर्थिक दृष्टि से संपन्न हो सके। 1 रुपये का सिक्का इसके प्रतीक के रूप में प्रयोग में लाया गया। इसे शुभ और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है क्योंकि एक रुपये का सिक्का सामान्य तौर पर सभी वर्गों के लोगों के पास उपलब्ध होता था और इसे किसी भी कामकाजी व्यक्ति को देने से धन की बर्बादी नहीं होती थी।

धार्मिक और सांस्कृतिक कारण

भारतीय धर्म और संस्कृति में सिक्के को सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। 1 रुपये का सिक्का शगुन के रूप में देने से यह संदेश जाता है कि व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य और सफलता का प्रवेश हो। साथ ही  यह भी माना जाता है कि 1 रुपये का सिक्का न केवल धन की वृद्धि का प्रतीक है बल्कि यह देने वाले और प्राप्त करने वाले दोनों के रिश्ते को मजबूत करने का एक माध्यम भी है।

संकेत: भगवान का आशीर्वाद और समाजिक सम्मान

यह परंपरा आज भी जारी है क्योंकि इसे शुभ और भगवान के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। परिवार में शादी-ब्याह या अन्य किसी खास अवसर पर 1 रुपये का सिक्का देने से यह संदेश दिया जाता है कि व्यक्ति को दुआ और शुभकामनाएं दी जा रही हैं ताकि उसकी ज़िन्दगी खुशहाल हो और उसे हर क्षेत्र में सफलता मिले। इसके अलावा समाज में सम्मान और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने के रूप में भी इसे देखा जाता है।

आधुनिक समय में भी प्रासंगिकता

आज भी कई लोग शगुन के रूप में 1 रुपये का सिक्का देते हैं जो न केवल परंपरा को बनाए रखने का तरीका है बल्कि यह आज भी एक अच्छी ख्याति और समृद्धि की ओर संकेत करता है। इसके अलावा यह एक उपहार के रूप में व्यक्ति को अपने समाज में सम्मान और प्यार महसूस कराता है।

इस तरह, सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी हमारे समाज में जीवित है और इसके पीछे छुपी हुई धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वता इसे और भी खास बना देती है।

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