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देश की संपत्ति में तीसरे नंबर पर आता है वक्फ बोर्ड

नई दिल्ली:- इन दिनों वक्फ बोर्ड की चर्चा जोरों पर है। वजह है मोदी सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड अधिनियम में संशोधन विधेयक लाना। सरकार के इस कदम को कुछ लोग वक्फ बोर्ड के अधिकार छिनने वाला कदम बता रहे हैं तो कुछ इसे जन कल्याण से जुड़ा बता रहे है।

इस सबके बीच ये समझते हैं कि आखिर वक्फ बोर्ड है क्या और इसकी संपत्ति कौनसी होती है।अगर भारत देश की बात करें तो संपत्ति ( जमीन ) के मामले में वक्फ बोर्ड का नम्बर सेना और रेलवे के बाद आता है। पूरे देश में वक्फ बोर्ड के पास लगभग 9 लाख 40 हजार एकड़ भूमि है जिस पर वक्फ बोर्ड की संपत्ति है.बात को विस्तार देने से पहले जानते हैं कि आखिर वक्फ बोर्ड क्या होता है?

वक्फ अलल औलाद:-

वक्फ अलल औलाद के मायने ये हैं कि वो ज़मीन-जायदाद जो कोई मुस्लिम दान कर देता है। इसे अल्लाह की सम्पति की कहते हैं। दान की संपत्ति का इस्तेमाल जन-कल्याण के लिए किया जाना चाहिए। हालाँकि उसका मैनेजमेंट दानदाता के परिवार के पास रहता है। परिवार के सदस्य इस ज़मीन को अब बेच नहीं सकते। हाँ इतना जरुर है कि वो संपत्ति का इस्तेमाल पर फ़ैसला ले सकते हैं।

मुस्लिम पर्सनल बोर्ड का क्या है कहना :-

केंद्र सरकार ने वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया है। लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से पहले ही ये साफ किया जा चुका है कि वक्फ बोर्ड की कानूनी स्थिति और शक्तियों में किसी तरह का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वहीं सरकार की तरफ से ये कहा गया है कि पेश विधेयक सच्चर कमिटी की सिफारिशों को देखते हुए तैयार किया गया है। इस विदेय्क से इनके कामकाज में अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित हो पाएगी। साथ ही महिलाओं की भागीदारी को भी महत्व दिया गया है।

वक्फ बोर्ड के दावे के बाद किसी जमीन पर हक पाना हो जाता है मुश्किल :-

अभी की बात करें तो 1995 में हुए संशोधन के बाद वक्फ बोर्ड के पास असीमित अधिकार हैं। वक्फ की संपत्तियों को विशेष दर्जा प्राप्त रहता है। ये दर्जा अन्य किसी भी ट्रस्ट से ऊपर होता है। बोर्ड के पास ये अधिकार है कि वो किसी भी संपत्ति की जांच कर सकता है। अगर बोर्ड संपत्ति पर अपना दावा कर दे तो उसे उलटना बेहद मुश्किल होता है। इस बोर्ड के पास एक एक्ट है जो है वक्फ एक्ट। इसके सेक्शन 85 को असीम शक्ति प्रदान की गयी है। इस सेक्शन के तहत लिए गए बोर्ड के फैसले को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं मिल सकती।

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