पटना (बिहार):- बिहार की राजनीति एक बार फिर सीटों की खींचतान में उलझ गई है। एनडीए के भीतर सीट शेयरिंग का फॉर्मूला लगभग तय माना जा रहा है लेकिन अभी भी छोटे दलों की मांगें तस्वीर को जटिल बना रही हैं। भाजपा और जदयू के बीच बराबरी के आधार पर सीटों का बंटवारा लगभग निश्चित है। इस स्थिति में सहयोगी दलों जैसे लोजपा रामविलास और हम को ज्यादा सीटें मिलने की संभावना बेहद कम दिख रही है।
चिराग पासवान की पार्टी लगातार चालीस से अधिक सीटों की मांग पर अड़ी हुई है। वहीं जीतन राम मांझी भी अपनी पार्टी हम के लिए पंद्रह सीटों की मांग कर चुके हैं। लेकिन सूत्रों के अनुसार एनडीए का शीर्ष नेतृत्व इन दोनों दलों को आधी सीटें देने के मूड में है। यही वजह है कि दोनों नेताओं के लिए आगे का रास्ता मुश्किल होता नजर आ रहा है। अगर समझौता नहीं होता तो इन दलों की नाराजगी गठबंधन के लिए चुनौती बन सकती है।
कुशवाहा की पार्टी भी सीटों को लेकर नजर गड़ाए बैठी है। छोटे दलों के बीच यह प्रतिस्पर्धा भाजपा और जदयू के लिए भी परेशानी का कारण बन सकती है क्योंकि दोनों बड़ी पार्टियां ज्यादा समझौते के लिए तैयार नहीं दिख रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर चिराग और मांझी को अपेक्षित संख्या नहीं मिलती तो वे अलग रास्ता भी चुन सकते हैं जिससे चुनावी समीकरण पर गहरा असर पड़ेगा।
फिलहाल एनडीए की रणनीति यह है कि बड़े दलों को अधिक प्राथमिकता दी जाए और छोटे दलों को कम सीटों में मनाने की कोशिश की जाए। आने वाले दिनों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि चिराग पासवान और जीतन राम मांझी गठबंधन के साथ बने रहते हैं या अपनी राजनीतिक राह अलग चुनते हैं। यह फैसला बिहार की राजनीति में बड़ा मोड़ साबित हो सकता है।
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