महाराष्ट्र (मुंबई):- हिंदी सिनेमा के इतिहास में सुनील दत्त एक ऐसा नाम है जो न केवल अभिनय के लिए बल्कि अपने संघर्ष और सेवा भाव के लिए भी याद किए जाते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि एक समय था जब सुनील दत्त आम लोगों की तरह बसों में टिकट काटते थे और मुंबई की गर्मी में बस कंडक्टर की नौकरी करते थे।
सुनील दत्त का जन्म पाकिस्तान के झेलम जिले में हुआ था और विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। नई जिंदगी की शुरुआत उन्होंने बेहद कठिन हालात में की। पढ़ाई के लिए उन्होंने मुंबई यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और साथ ही अपनी रोजी रोटी के लिए उन्होंने बस कंडक्टर की नौकरी करना शुरू किया।
उनके भीतर कुछ अलग करने की चाह हमेशा से थी। पढ़ाई के साथ साथ वह रेडियो से भी जुड़े और उन्होंने रेडियो सिलोन में बतौर होस्ट काम किया। यही काम आगे चलकर उन्हें फिल्म इंडस्ट्री की ओर ले गया। एक बार उन्हें अभिनेत्री नरगिस का इंटरव्यू लेने का मौका मिला और यहीं से उनकी जिंदगी ने एक नया मोड़ लिया।
फिल्मों में उनकी शुरुआत ‘रेलवे प्लेटफार्म’ से हुई लेकिन उन्हें असली पहचान मिली फिल्म ‘मदर इंडिया’ से जिसमें उन्होंने नरगिस के बेटे का किरदार निभाया। इसी फिल्म के दौरान दोनों करीब आए और बाद में शादी कर ली। उनकी जोड़ी को न केवल पर्दे पर बल्कि असल जिंदगी में भी काफी पसंद किया गया।
सुनील दत्त न केवल एक सफल अभिनेता थे बल्कि समाजसेवा में भी उनकी गहरी रुचि थी। उन्होंने मुंबई में कई बार बाढ़ और दंगों के समय राहत कार्यों में हिस्सा लिया। इसके साथ ही वह राजनीति में भी सक्रिय हुए और कई बार सांसद बने।
उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि अगर इंसान के अंदर मेहनत का जुनून हो और कुछ कर गुजरने की चाह हो तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रह सकता। बस कंडक्टर से लेकर हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार बनने तक सुनील दत्त का सफर हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो कठिनाइयों से हार मानने की बजाय उनसे लड़कर आगे बढ़ने का हौसला रखता है।
आज भी जब उनके बेटे संजय दत्त का नाम लिया जाता है तो लोग सुनील दत्त के संघर्ष और संस्कारों को याद किए बिना नहीं रहते। उनका जीवन एक मिसाल है कि सच्चाई और समर्पण से कोई भी ऊंचाई हासिल की जा सकती है।